पत्रकारीय लेखन के विविध रूप।NCERT-CBSE/HBSE
विशेष लेखन /पत्रकारीय लेखन के विविध और लेखन रूप प्रक्रिया
खंड 'क' - प्रष्ट प्रश्नोत्तर
प्रश्न . पत्रकार कितने प्रकार के होते हैं? उन परिचय दें। उत्तर पत्रकार तीन प्रकार के होते हैं, तो नि है
(i) पूर्णकालिक पत्रकार किसी भी समाचार संगठन में करने तथा नियमित रूप से वेतनभोगी (वेतन प्राप्त करने वाला कर्मचारी पूर्णकालिक पत्रकार कहलाता है।
(ii) अंशकालिक पत्रकार किसी भी समाचार संगठन के लिए एक निश्चित मानदेय (निश्चित रकम) पर काम करने वाला कर्मचारी अंशकालिक पत्रकार कहलाता है।
(iii) फ्रीलांसर (स्वतंत्र पत्रकार) जो पत्रकार किसी एक समाचार करके भुगतान के आधार पर अलग-अलग मखदारों के लिए लिखता है, उसे कीलसर पत्रकार कहते हैं।
प्रश्न 2. पत्रकारीय लेखन किसे कहते हैं? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर: अखबार का मुख्य उद्देश्य पाठकों को सूचना देना उन्हें जागरूक व शिक्षित करना तथा उनका मनोरंजन करना है। लोकतांत्रिक समाज में अखबार जनता के पहरेदार ,शिक्षक तथा जनमत निर्माता के रूप में महत्वपूर्ण है। इसके लिए वे अपने पाठकों को प्रतिदिन देश-विदेश की घटनाओं सामाजिक व आर्थिक विचारों आदि से अवगत कराते हैं।अखबार के लिए लिखने का कार्य पत्रकार करते हैं। जन समाचार-पत्र व अन्य समाचार माध्यमों के लिए काम करने वाले प्रकार अपने
दर्शक ,श्रोताओं तक सभी प्रकार की सूचनाएं पहुँचाने के लिए जब लेखन कार्य करते हैं तब उसे पत्रकारिता लेखन कहा जाता है। इसमें तात्कालिकता पाठकों की रुचि के जरूरतों को महत्व दिया जाता है।
प्रश्न 3. अच्छे पत्रकारीय लेखन में किन-किन बातों का ध्यान रखना पड़ता है?
उत्तर : समाचार के पाठक, दर्शक या श्रोता, शिक्षित या अल्प शिक्षित हो सकते हैं पत्रकार का मुख्य उद्देश्य अपने लेखन द्वारा समाचार सूचना आदि को प्रत्येक पाठक तक पहुंचाना होता है । अतः ऐसी दशा में अहो पारीय लेखन में कुछ बातों का विशेष ध्यान रखना पड़ता है, जोकि निम्नलिखित है
(i) अपने लेखन में छोटे वाक्य लिखें। जटिल या मिश्र वाक्य के स्थान पर संयुक्त का प्रयोग करें। (1) अपने लेखन में आम बोलचाल की भाषा व प्रचलित शब्दों का ही प्रयोग करें। उसने गैर जरूरी या अप्रचलित शब्दों का प्रयोग न करें।
(ii) लेखन को प्रभावी, रोचक बनाने के लिए छोटे वाक्यों के साथ कुछ मध्यम व कुछ बड़े वाक्यों का प्रयोग करें। (v) लेखन को रोचक और सारगर्भित बनाने के लिए उसमें उपयुक्त मुहावरों, लोकोक्तियों का सीमित प्रयोग करें। पत्रकारीय लेखन में यह ध्यान अवश्य रखें कि इसका उद्देश्य अपनी भावनाओं, विचारों तथ्यों को प्रस्तुत करना है, न कि दूसरे व्यक्ति को प्रभावित करना।
(vi) लेखन से पूर्व उस विषय पर ध्यान से विचार करना चाहिए और उसका विश्लेषण करना चाहिए। (vi) एक अच्छा पत्रकार अपने देश, समाज व आस-पड़ोस में घटित होने वाली घटनाओं पर गहरी निगाह रखता है ताकि क अपने लेखन के लिए ठोस विचार बिंदु निकाल सके।
चित होते हैं) तथा क्लीशे (दोहराव) का प्रयोग न करें।
चित होते हैं) तथा क्लीशे (दोहराव) का प्रयोग न करें।
प्रश्न 4. समत्वार कैसे लिखा जाता है? चित्र सहित स्पष्ट करें। उत्तर : वैसे तो किसी भी लेखन के लिए कोई निश्चित फार्मूला नहीं होता है, फिर भी समाचार को रोचक, प्रभावी बनाने लिए आजकल उलटा पिरामिड शैली में समाचार लिखे जाते हैं। किसी भी जनसंचार माध्यम के लिए 90% समाचार इसी शैली में लिखे जाते हैं। इस शैली का प्रयोग 19वीं सदी के मध्य में हुआ तथा अमेरिका में गृहयुद्ध के दौरान इसका विकास हुआ है। लेखन व संपादन की सुविधा के कारण यह शैली अब समाचार लेखन की मानक शैली बन गई है।
कोई भी घटना एक समाचार को जन्म दे सकती है। इस घटना का पूरा विवरण एक कहानी की तरह होता है। कहानी सबसे बड़ी विशेषता यह होती है कि इसमें 'क्लाइमेक्स' बिल्कुल अंत में आता है परंतु समाचार में यही क्लाइमेक्स सबसे पहले दिया जाता है। इस प्रकार कहानी का ढाँचा सीधे पिरामिड की तरह होता है जबकि समाचार का ढाँचा इससे ठीक विपरीत उलटे मिड की तरह होता है। इसी कारण समाचार लेखन की शैली को उलटा पिरामिड शैली कहा जाता है।।
इस शैली में समाचार लिखते समय निम्नलिखित तीन बातों को ध्यान में रखा जाता है :
(i) समाचार के आरंभ में घटना का क्लाइमेक्स हो। इसे समाचार का इंट्रो, लीड या मुखड़ा भी कहा जाता है। (ii) समाचार में इट्रों के बाद उस घटना के विस्तृत ब्योरे को पटते महत्त्व के क्रम में प्रस्तुत किया जाए। इसे समाचार बॉडी भी कहा जाता है। (iii) समाचार में सबसे अंत में समापन होता है। यद्यपि इस शैली में समापन जैसी कोई अलग चीज नहीं होती, बल्कि प्रासंगिक तथ्य और घटना से संबधित सूचनाएँ दी जा सकती हैं। इस प्रकार समाचार को उलटा पिरामिड शैली में लिखा जाता है।
प्रश्न 5. समाचार लिखने के ककार कौन-कौन से है?
उत्तर : किसी भी समाचार को पढ़ते समय पाठक के मन में छह प्रश्न या जिज्ञासाएँ उत्पन्न होती हैं। वह किसी भी घटना में यह अवश्य जानना चाहता है कि क्या हुआ, किसके साथ हुआ (कौन), कहाँ हुआ, कब हुआ, क्यों हुआ और कैसे हुआ। नी प्रश्न 'क' से आरंभ होते हैं, अतः इन्हें ककार कहा गया है। समाचार के निम्नलिखित छह ककार होते हैं ।
(i) क्या हुआ)
(ii) किसके (साथ हुआ या कौन)
(iii) कहां (हुआ)
(iv) कब (हुआ)
(v) क्यों (हुआ)
(vi) कैसे (हुआ।)
प्रश्नः .रेडियो और टेलीविज़न समाचार की भाषा व शैली के विषय में बताइए।
उत्तरः
रेडियो और टी०वी० आम आदमी के माध्यम हैं। भारत जैसे विकासशील देश में उसके श्रोताओं और दर्शकों में पढ़े-लिखे लोगों से निरक्षर तक और मध्यम वर्ग से लेकर किसान-मज़दूर तक सभी हैं। इन सभी लोगों की सूचना की ज़रूरतें पूरी करना ही रेडियो और टी०वी० का उद्देश्य है। लोगों तक पहुँचने का माध्यम भाषा है और इसलिए भाषा ऐसी होनी चाहिए कि वह सभी को आसानी से समझ में आ सके, लेकिन साथ ही भाषा के स्तर और गरिमा के साथ कोई समझौता भी न करना पड़े।
लेखक आपसी बोलचाल में जिस भाषा का इस्तेमाल करते हैं, उसी तरह की भाषा का इस्तेमाल रेडियो और टी०वी० समाचार में भी करें। सरल भाषा लिखने का सबसे बेहतर उपाय यह है कि वाक्य छोटे, सीधे और स्पष्ट लिखे जाएँ। रेडियो और टी०वी० समाचार में भाषा और शैली के स्तर पर काफ़ी सावधानी बरतनी पड़ती है। ऐसे कई शब्द हैं जिनका अखबारों में धड़ल्ले से इस्तेमाल होता है, लेकिन रेडियो और टी०वी० में उनके प्रयोग से बचा जाता है। जैसे निम्नलिखित, उपरोक्त, अधोहस्ताक्षरित और क्रमांक आदि शब्दों का प्रयोग इन माध्यमों में बिलकुल मना है। इसी तरह द्वारा शब्द के इस्तेमाल से भी बचने की कोशिश की जाती है, क्योंकि इसका प्रयोग कई बार बहुत भ्रामक अर्थ देने लगता है। उदाहरण के लिए इस वाक्य पर गौर कीजिए-पुलिस द्वारा चोरी करते हुए दो व्यक्तियों को पकड़ लिया गया। इसके बजाय पुलिस ने दो व्यक्तियों को चोरी करते हुए पकड़ लिया। ज़्यादा स्पष्ट है।
इसी तरह तथा, एवं, अथवा, व, किंतु, परंतु, यथा आदि शब्दों के प्रयोग से बचना चाहिए और उनकी जगह और, या लेकिन आदि शब्दों का इस्तेमाल करना चाहिए। साफ़-सुथरी और सरल भाषा लिखने के लिए गैरज़रूरी विशेषणों, सामासिक और तत्सम शब्दों, अतिरंजित उपमाओं आदि से बचना चाहिए। इनसे भाषा कई बार बोझिल होने लगती है। मुहावरों के इस्तेमाल से भाषा आकर्षक और प्रभावी बनती है। इसलिए उनका प्रयोग होना चाहिए। लेकिन मुहावरों का इस्तेमाल स्वाभाविक और जहाँ ज़रूरी हो वहीं होना चाहिए अन्यथा वे भाषा के स्वाभाविक प्रवाह को बाधित करते हैं।
प्रश्नः .इंटरनेट के लाभ-हानि बताइए।
उत्तरः इंटरनेट सिर्फ एक टूल यानी औज़ार है, जिसे आप सूचना, मनोरंजन, ज्ञान और व्यक्तिगत तथा सार्वजनिक संवादों के आदान-प्रदान के लिए इस्तेमाल कर सकते हैं, लेकिन इंटरनेट जहाँ सूचनाओं के आदान-प्रदान का बेहतरीन औज़ार है, वहीं वह अश्लीलता, दुष्प्रचार और गंदगी फैलाने का भी जरिया है। इंटरनेट पर पत्रकारिता के भी दो रूप हैं। पहला तो इंटरनेट का एक माध्यम या औजार के तौर पर इस्तेमाल, यानी खबरों के संप्रेषण के लिए इंटरनेट का उपयोग। दूसरा, रिपोर्टर अपनी खबर को एक जगह से दूसरी जगह तक ईमेल के जरिए भेजने और समाचारों के संकलन, खबरों के सत्यापन और पुष्टिकरण में भी इसका इस्तेमाल करता है।
रिसर्च या शोध का काम तो इंटरनेट ने बेहद आसान कर दिया है। टेलीविज़न या अन्य समाचार माध्यमों में खबरों के बैकग्राउंडर तैयार करने या किसी खबर की पृष्ठभूमि तत्काल जानने के लिए जहाँ पहले ढेर सारी अखबारी कतरनों की फाइलों को ढूँढना पड़ता था, वहीं आज चंद मिनटों में इंटरनेट विश्वव्यापी संजाल के भीतर से कोई भी बैकग्राउंडर या पृष्ठभूमि खोजी जा सकती है।
प्रश्नः .भारत में इंटरनेट पत्रकारिता पर टिप्पणी करें।
उत्तरः भारत में इंटरनेट पत्रकारिता का अभी दूसरा दौर चल रहा है। भारत के लिए पहला दौर 1993 से शुरू माना जा सकता है, जबकि दूसरा दौर सन् 2003 से शुरू हुआ है। पहले दौर में हमारे यहाँ भी प्रयोग हुए। डॉटकॉम का तूफ़ान आया और बुलबुले की तरह फूट गया। अंततः वही टिके रह पाए जो मीडिया उद्योग में पहले से ही टिके हुए थे। आज पत्रकारिता की दृष्टि से ‘टाइम्स ऑफ़ इंडिया’, ‘हिंदुस्तान टाइम्स’, ‘इंडियन एक्सप्रेस’, ‘हिंदू’, ‘ट्रिब्यून’, ‘स्टेट्समैन’, ‘पॉयनियर’, ‘एनडीटी.वी.’, ‘आईबीएन’, ‘जी न्यूज़’, ‘आजतक’ और ‘आउटलुक’ की साइटें ही बेहतर हैं। ‘इंडिया टुडे’ जैसी कुछ साइटें भुगतान के बाद ही देखी जा सकती हैं। जो साइटें नियमित अपडेट होती हैं, उनमें ‘हिंदू’, ‘टाइम्स ऑफ़ इंडिया’, ‘आउटलुक’, ‘इंडियन एक्सप्रेस’, ‘एनडीटी.वी.’, ‘आजतक’ और ‘जी न्यूज़’ प्रमुख हैं।
लेकिन भारत में सच्चे अर्थों में यदि कोई वेब पत्रकारिता कर रहा है तो वह ‘रीडिफ़ डॉटकॉम’, ‘इंडियाइंफोलाइन’ व ‘सीफी’ जैसी कुछ ही साइटें हैं। रीडिफ़ को भारत की पहली साइट कहा जा सकता है जो कुछ गंभीरता के साथ इंटरनेट पत्रकारिता कर रही है। वेब साइट पर विशुद्ध पत्रकारिता शुरू करने का श्रेय ‘तहलका डॉटकॉम’ को जाता है।
प्रश्नः हिंदी नेट संसार पर टिप्पणी करें।
उत्तरःहिंदी में नेट पत्रकारिता ‘वेब दुनिया’ के साथ शुरू हुई। इंदौर के नई दुनिया समूह से शुरू हुआ यह पोर्टल हिंदी का संपूर्ण पोर्टल है। इसके साथ ही हिंदी के अखबारों ने भी विश्वजाल में अपनी उपस्थिति दर्ज करानी शुरू की। ‘जागरण’, ‘अमर उजाला’, ‘नई दुनिया’, ‘हिंदुस्तान’, ‘भास्कर’, ‘राजस्थान पत्रिका’, ‘नवभारत टाइम्स’, ‘प्रभात खबर’ व ‘राष्ट्रीय सहारा’ के वेब संस्करण शुरू हुए। ‘प्रभासाक्षी’ नाम से शुरू हुआ अखबार, प्रिंट रूप में न होकर सिर्फ इंटरनेट पर ही उपलब्ध है। आज पत्रकारिता के लिहाज़ से हिंदी की सर्वश्रेष्ठ साइट बीबीसी की है। यही एक साइट है जो इंटरनेट के मानदंडों के हिसाब से चल रही है। वेब दुनिया ने शुरू में काफ़ी आशाएँ जगाई थीं, लेकिन धीरे-धीरे स्टाफ और साइट की अपडेटिंग में कटौती की जाने लगी जिससे पत्रकारिता की वह ताज़गी जाती रही जो शुरू में नज़र आती थी।
हिंदी वेबजगत का एक अच्छा पहलू यह भी है कि इसमें कई साहित्यिक पत्रिकाएँ चल रही हैं। अनुभूति, अभिव्यक्ति, हिंदी नेस्ट, सराय आदि अच्छा काम कर रहे हैं। यही नहीं, सरकार के तमाम मंत्रालय, विभाग, बैंक आदि ने भी अपने हिंदी अनुभाग शुरू किए हैं।
हिंदी वेब पत्रकारिता में प्रमुख समस्या हिंदी के फॉन्ट की है। अभी कोई ‘की बोर्ड’ हिंदी में नहीं बना है। डायनमिक फॉन्ट की अनुपलब्धता के कारण हिंदी की अधिकतर साइटें नहीं खुलती।
प्रश्नः .पत्रकारीय लेखन क्या है? इसके कितने रूप हैं?
उत्तरः अखबार या अन्य समाचार माध्यमों में काम करने वाले पत्रकार अपने पाठकों, दर्शकों और श्रोताओं तक सूचना पहुँचाने के लिए लेखन के विभिन्न रूपों का इस्तेमाल करते हैं। इसे ही पत्रकारीय लेखन कहते हैं और इसके कई रूप हैं। पत्रकार तीन तरह के होते हैं-पूर्णकालिक, अंशकालिक और फ्रीलांसर यानी स्वतंत्र। पूर्णकालिक पत्रकार किसी समाचार संगठन में काम करनेवाला नियमित वेतनभोगी कर्मचारी होता है, जबकि अंशकालिक पत्रकार (स्ट्रिंगर) किसी समाचार संगठन के लिए एक निश्चित मानदेय पर काम करनेवाला पत्रकार है, लेकिन फ्रीलांसर पत्रकार का संबंध किसी खास अखबार से नहीं होता है, बल्कि वे भुगतान के आधार पर अलग-अलग अखबारों के लिए लिखता है।
ऐसे में, यह समझना बहुत ज़रूरी है कि पत्रकारीय लेखन का संबंध और दायरा समसामयिक और वास्तविक घटनाओं, समस्याओं और मुद्दों से है। हालाँकि यह माना जाता है कि पत्रकारिता जल्दी में लिखा गया साहित्य है। लेकिन यह साहित्य और सृजनात्मक लेखन-कविता, कहानी, उपन्यास आदि से इस मायने में अलग है कि इसका रिश्ता तथ्यों से है न कि कल्पना से। दूसरे, पत्रकारीय लेखन साहित्यिक-सृजनात्मक लेखन से इस मायने में भी अलग है कि यह अनिवार्य रूप से तात्कालिकता और अपने पाठकों की रुचियों और जरूरतों को ध्यान में रखकर किया जाने वाला लेखन है, जबकि साहित्यिक रचनात्मक लेखन में लेखक को काफ़ी छूट होती है।
प्रश्नः अखबार के लिए प्रयुक्त भाषा में किन-किन बातों का ध्यान रखा जाता है?
उत्तरः अखबार और पत्रिका के लिए लिखने वाले लेखक और पत्रकार को यह हमेशा याद रखना चाहिए कि वह विशाल समुदाय के लिए लिख रहा है जिसमें एक विश्वविद्यालय के कुलपति सरीखे विद्वान से लेकर कम पढ़ा-लिखा मज़दूर और किसान सभी शामिल हैं। इसलिए उसकी लेखन शैली, भाषा और गूढ़ से गूढ़ विषय की प्रस्तुति ऐसी सहज, सरल और रोचक होनी चाहिए कि वह आसानी से सबकी समझ में आ जाए। पत्रकारीय लेखन में अलंकारिक-संस्कृतनिष्ठ भाषा-शैली के बजाय आम बोलचाल की भाषा का इस्तेमाल किया जाता है।
पाठकों को ध्यान में रखकर ही अखबारों में सीधी, सरल, साफ़-सुथरी, लेकिन प्रभावी भाषा के इस्तेमाल पर जोर दिया जाता है। शब्द सरल और आसानी से समझ में आने वाले होने चाहिए। वाक्य छोटे और सहज होने चाहिए। जटिल और लंबे वाक्यों से बचना चाहिए। भाषा को प्रभावी बनाने के लिए गैरज़रूरी विशेषणों, जार्गन्स (ऐसी शब्दावली जिससे बहुत कम पाठक परिचित होते हैं) और क्लीशे ( दोहराव) का प्रयोग नहीं करना चाहिए। इनके प्रयोग से भाषा बोझिल हो जाती है।
उत्तरः
रेडियो और टी०वी० आम आदमी के माध्यम हैं। भारत जैसे विकासशील देश में उसके श्रोताओं और दर्शकों में पढ़े-लिखे लोगों से निरक्षर तक और मध्यम वर्ग से लेकर किसान-मज़दूर तक सभी हैं। इन सभी लोगों की सूचना की ज़रूरतें पूरी करना ही रेडियो और टी०वी० का उद्देश्य है। लोगों तक पहुँचने का माध्यम भाषा है और इसलिए भाषा ऐसी होनी चाहिए कि वह सभी को आसानी से समझ में आ सके, लेकिन साथ ही भाषा के स्तर और गरिमा के साथ कोई समझौता भी न करना पड़े।
लेखक आपसी बोलचाल में जिस भाषा का इस्तेमाल करते हैं, उसी तरह की भाषा का इस्तेमाल रेडियो और टी०वी० समाचार में भी करें। सरल भाषा लिखने का सबसे बेहतर उपाय यह है कि वाक्य छोटे, सीधे और स्पष्ट लिखे जाएँ। रेडियो और टी०वी० समाचार में भाषा और शैली के स्तर पर काफ़ी सावधानी बरतनी पड़ती है। ऐसे कई शब्द हैं जिनका अखबारों में धड़ल्ले से इस्तेमाल होता है, लेकिन रेडियो और टी०वी० में उनके प्रयोग से बचा जाता है। जैसे निम्नलिखित, उपरोक्त, अधोहस्ताक्षरित और क्रमांक आदि शब्दों का प्रयोग इन माध्यमों में बिलकुल मना है। इसी तरह द्वारा शब्द के इस्तेमाल से भी बचने की कोशिश की जाती है, क्योंकि इसका प्रयोग कई बार बहुत भ्रामक अर्थ देने लगता है। उदाहरण के लिए इस वाक्य पर गौर कीजिए-पुलिस द्वारा चोरी करते हुए दो व्यक्तियों को पकड़ लिया गया। इसके बजाय पुलिस ने दो व्यक्तियों को चोरी करते हुए पकड़ लिया। ज़्यादा स्पष्ट है।
इसी तरह तथा, एवं, अथवा, व, किंतु, परंतु, यथा आदि शब्दों के प्रयोग से बचना चाहिए और उनकी जगह और, या लेकिन आदि शब्दों का इस्तेमाल करना चाहिए। साफ़-सुथरी और सरल भाषा लिखने के लिए गैरज़रूरी विशेषणों, सामासिक और तत्सम शब्दों, अतिरंजित उपमाओं आदि से बचना चाहिए। इनसे भाषा कई बार बोझिल होने लगती है। मुहावरों के इस्तेमाल से भाषा आकर्षक और प्रभावी बनती है। इसलिए उनका प्रयोग होना चाहिए। लेकिन मुहावरों का इस्तेमाल स्वाभाविक और जहाँ ज़रूरी हो वहीं होना चाहिए अन्यथा वे भाषा के स्वाभाविक प्रवाह को बाधित करते हैं।
प्रश्नः .इंटरनेट के लाभ-हानि बताइए।
उत्तरः इंटरनेट सिर्फ एक टूल यानी औज़ार है, जिसे आप सूचना, मनोरंजन, ज्ञान और व्यक्तिगत तथा सार्वजनिक संवादों के आदान-प्रदान के लिए इस्तेमाल कर सकते हैं, लेकिन इंटरनेट जहाँ सूचनाओं के आदान-प्रदान का बेहतरीन औज़ार है, वहीं वह अश्लीलता, दुष्प्रचार और गंदगी फैलाने का भी जरिया है। इंटरनेट पर पत्रकारिता के भी दो रूप हैं। पहला तो इंटरनेट का एक माध्यम या औजार के तौर पर इस्तेमाल, यानी खबरों के संप्रेषण के लिए इंटरनेट का उपयोग। दूसरा, रिपोर्टर अपनी खबर को एक जगह से दूसरी जगह तक ईमेल के जरिए भेजने और समाचारों के संकलन, खबरों के सत्यापन और पुष्टिकरण में भी इसका इस्तेमाल करता है।
रिसर्च या शोध का काम तो इंटरनेट ने बेहद आसान कर दिया है। टेलीविज़न या अन्य समाचार माध्यमों में खबरों के बैकग्राउंडर तैयार करने या किसी खबर की पृष्ठभूमि तत्काल जानने के लिए जहाँ पहले ढेर सारी अखबारी कतरनों की फाइलों को ढूँढना पड़ता था, वहीं आज चंद मिनटों में इंटरनेट विश्वव्यापी संजाल के भीतर से कोई भी बैकग्राउंडर या पृष्ठभूमि खोजी जा सकती है।
प्रश्नः .भारत में इंटरनेट पत्रकारिता पर टिप्पणी करें।
उत्तरः भारत में इंटरनेट पत्रकारिता का अभी दूसरा दौर चल रहा है। भारत के लिए पहला दौर 1993 से शुरू माना जा सकता है, जबकि दूसरा दौर सन् 2003 से शुरू हुआ है। पहले दौर में हमारे यहाँ भी प्रयोग हुए। डॉटकॉम का तूफ़ान आया और बुलबुले की तरह फूट गया। अंततः वही टिके रह पाए जो मीडिया उद्योग में पहले से ही टिके हुए थे। आज पत्रकारिता की दृष्टि से ‘टाइम्स ऑफ़ इंडिया’, ‘हिंदुस्तान टाइम्स’, ‘इंडियन एक्सप्रेस’, ‘हिंदू’, ‘ट्रिब्यून’, ‘स्टेट्समैन’, ‘पॉयनियर’, ‘एनडीटी.वी.’, ‘आईबीएन’, ‘जी न्यूज़’, ‘आजतक’ और ‘आउटलुक’ की साइटें ही बेहतर हैं। ‘इंडिया टुडे’ जैसी कुछ साइटें भुगतान के बाद ही देखी जा सकती हैं। जो साइटें नियमित अपडेट होती हैं, उनमें ‘हिंदू’, ‘टाइम्स ऑफ़ इंडिया’, ‘आउटलुक’, ‘इंडियन एक्सप्रेस’, ‘एनडीटी.वी.’, ‘आजतक’ और ‘जी न्यूज़’ प्रमुख हैं।
लेकिन भारत में सच्चे अर्थों में यदि कोई वेब पत्रकारिता कर रहा है तो वह ‘रीडिफ़ डॉटकॉम’, ‘इंडियाइंफोलाइन’ व ‘सीफी’ जैसी कुछ ही साइटें हैं। रीडिफ़ को भारत की पहली साइट कहा जा सकता है जो कुछ गंभीरता के साथ इंटरनेट पत्रकारिता कर रही है। वेब साइट पर विशुद्ध पत्रकारिता शुरू करने का श्रेय ‘तहलका डॉटकॉम’ को जाता है।
प्रश्नः हिंदी नेट संसार पर टिप्पणी करें।
उत्तरःहिंदी में नेट पत्रकारिता ‘वेब दुनिया’ के साथ शुरू हुई। इंदौर के नई दुनिया समूह से शुरू हुआ यह पोर्टल हिंदी का संपूर्ण पोर्टल है। इसके साथ ही हिंदी के अखबारों ने भी विश्वजाल में अपनी उपस्थिति दर्ज करानी शुरू की। ‘जागरण’, ‘अमर उजाला’, ‘नई दुनिया’, ‘हिंदुस्तान’, ‘भास्कर’, ‘राजस्थान पत्रिका’, ‘नवभारत टाइम्स’, ‘प्रभात खबर’ व ‘राष्ट्रीय सहारा’ के वेब संस्करण शुरू हुए। ‘प्रभासाक्षी’ नाम से शुरू हुआ अखबार, प्रिंट रूप में न होकर सिर्फ इंटरनेट पर ही उपलब्ध है। आज पत्रकारिता के लिहाज़ से हिंदी की सर्वश्रेष्ठ साइट बीबीसी की है। यही एक साइट है जो इंटरनेट के मानदंडों के हिसाब से चल रही है। वेब दुनिया ने शुरू में काफ़ी आशाएँ जगाई थीं, लेकिन धीरे-धीरे स्टाफ और साइट की अपडेटिंग में कटौती की जाने लगी जिससे पत्रकारिता की वह ताज़गी जाती रही जो शुरू में नज़र आती थी।
हिंदी वेबजगत का एक अच्छा पहलू यह भी है कि इसमें कई साहित्यिक पत्रिकाएँ चल रही हैं। अनुभूति, अभिव्यक्ति, हिंदी नेस्ट, सराय आदि अच्छा काम कर रहे हैं। यही नहीं, सरकार के तमाम मंत्रालय, विभाग, बैंक आदि ने भी अपने हिंदी अनुभाग शुरू किए हैं।
हिंदी वेब पत्रकारिता में प्रमुख समस्या हिंदी के फॉन्ट की है। अभी कोई ‘की बोर्ड’ हिंदी में नहीं बना है। डायनमिक फॉन्ट की अनुपलब्धता के कारण हिंदी की अधिकतर साइटें नहीं खुलती।
प्रश्नः .पत्रकारीय लेखन क्या है? इसके कितने रूप हैं?
उत्तरः अखबार या अन्य समाचार माध्यमों में काम करने वाले पत्रकार अपने पाठकों, दर्शकों और श्रोताओं तक सूचना पहुँचाने के लिए लेखन के विभिन्न रूपों का इस्तेमाल करते हैं। इसे ही पत्रकारीय लेखन कहते हैं और इसके कई रूप हैं। पत्रकार तीन तरह के होते हैं-पूर्णकालिक, अंशकालिक और फ्रीलांसर यानी स्वतंत्र। पूर्णकालिक पत्रकार किसी समाचार संगठन में काम करनेवाला नियमित वेतनभोगी कर्मचारी होता है, जबकि अंशकालिक पत्रकार (स्ट्रिंगर) किसी समाचार संगठन के लिए एक निश्चित मानदेय पर काम करनेवाला पत्रकार है, लेकिन फ्रीलांसर पत्रकार का संबंध किसी खास अखबार से नहीं होता है, बल्कि वे भुगतान के आधार पर अलग-अलग अखबारों के लिए लिखता है।
ऐसे में, यह समझना बहुत ज़रूरी है कि पत्रकारीय लेखन का संबंध और दायरा समसामयिक और वास्तविक घटनाओं, समस्याओं और मुद्दों से है। हालाँकि यह माना जाता है कि पत्रकारिता जल्दी में लिखा गया साहित्य है। लेकिन यह साहित्य और सृजनात्मक लेखन-कविता, कहानी, उपन्यास आदि से इस मायने में अलग है कि इसका रिश्ता तथ्यों से है न कि कल्पना से। दूसरे, पत्रकारीय लेखन साहित्यिक-सृजनात्मक लेखन से इस मायने में भी अलग है कि यह अनिवार्य रूप से तात्कालिकता और अपने पाठकों की रुचियों और जरूरतों को ध्यान में रखकर किया जाने वाला लेखन है, जबकि साहित्यिक रचनात्मक लेखन में लेखक को काफ़ी छूट होती है।
प्रश्नः अखबार के लिए प्रयुक्त भाषा में किन-किन बातों का ध्यान रखा जाता है?
उत्तरः अखबार और पत्रिका के लिए लिखने वाले लेखक और पत्रकार को यह हमेशा याद रखना चाहिए कि वह विशाल समुदाय के लिए लिख रहा है जिसमें एक विश्वविद्यालय के कुलपति सरीखे विद्वान से लेकर कम पढ़ा-लिखा मज़दूर और किसान सभी शामिल हैं। इसलिए उसकी लेखन शैली, भाषा और गूढ़ से गूढ़ विषय की प्रस्तुति ऐसी सहज, सरल और रोचक होनी चाहिए कि वह आसानी से सबकी समझ में आ जाए। पत्रकारीय लेखन में अलंकारिक-संस्कृतनिष्ठ भाषा-शैली के बजाय आम बोलचाल की भाषा का इस्तेमाल किया जाता है।
पाठकों को ध्यान में रखकर ही अखबारों में सीधी, सरल, साफ़-सुथरी, लेकिन प्रभावी भाषा के इस्तेमाल पर जोर दिया जाता है। शब्द सरल और आसानी से समझ में आने वाले होने चाहिए। वाक्य छोटे और सहज होने चाहिए। जटिल और लंबे वाक्यों से बचना चाहिए। भाषा को प्रभावी बनाने के लिए गैरज़रूरी विशेषणों, जार्गन्स (ऐसी शब्दावली जिससे बहुत कम पाठक परिचित होते हैं) और क्लीशे ( दोहराव) का प्रयोग नहीं करना चाहिए। इनके प्रयोग से भाषा बोझिल हो जाती है।
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