विदाई संभाषण 11th #vidhayi sambhashan
अभ्यास के प्रश्नों के उत्तर
प्रश्न 1. शिवशंभु की दो गायों के माध्यम से लेखक क्या कहना चाहता है ?
उत्तर - शिवशंभु की दो गायों के माध्यम से लेखक भारत के तत्कालीन वायसराय लॉर्ड कर्जन को यह बताना चाहता है कि भारत देश में शत्रु से बिछुड़ने पर भी दुःख का अनुभव होता है। शिवशंभु की एक गाय दूसरी गाय को अपने सॉंगों से टक्कर मारकर दुःख पहुँचाती थी फिर भी कमज़ोर गाय उसके बिछुड़ने पर दुःख को अनुभव करती है। लेखक यह बताना चाहता है कि भारत देश में भावनाएं प्रधान हैं। यहाँ के पशु-पक्षी भी बिछुड़ते समय आपसी वैर भाव को भुलाकर दुःख का अनुभव करते हैं। इसी प्रकार लॉर्ड कर्जन ने भारत में रहते हुए भारतवासियों को बहुत दुःख पहुँचाया। उसने भारतवासियों को पतन की ओर धकेला फिर भी भारतवासियों को उसकी विदाई पर गहरा दुःख अनुभव हो रहा था।
प्रश्न 2. आठ करोड़ प्रजा के गिड़गिड़ा कर विच्छेद न करने की प्रार्थना पर आपने जरा भी ध्यान नहीं दिया- यहाँ किस ऐतिहासिक घटना की ओर संकेत किया गया है ?
उत्तर - यहाँ लेखक ने सन् 1905 में लॉर्ड कर्जन द्वारा किए बंगाल के विभाजन की ऐतिहासिक घटना की ओर संकेत किया है। लॉर्ड कर्जन भारत में दो बार वायसराय बनकर आए। पहली बार वे सन् 1899 से 1904 तक तथा दूसरी बार वे सन् 1904 से 1905 तक भारत के वायसराय बने। इस पूरे समय में उन्होंने अंग्रेजों का वर्चस्व स्थापित है करने और भारत के संसाधनों का अंग्रेजों के हित में प्रयोग करने का कार्य किया। उन्होंने भारतीय लोगों को पूरी तरह असहाय और लाचार बनाकर रखा। भारत के लोग बंगाल का विभाजन नहीं चाहते थे किंतु उन्होंने अपनी मनमानी करते है हुए बंगाल को दो टुकड़ों में बाँट दिया। यद्यपि उस समय उनका भारत में वायसराय बने रहने का कार्यकाल भी समाप्त हो रहा था लेकिन भारत से जाते-जाते उन्होंने बंगाल का विभाजन कर ही दिया।
प्रश्न 3. लॉर्ड कर्जन को इस्तीफा क्यों देना पड़ गया ?
उत्तर- लॉर्ड कर्जन भारत में अंग्रेजी साम्राज्य के वायसराय बनकर आए। इन्होंने भारत में अंग्रेजी साम्राज्य की जड़ें मज़बूत करने और उनका वर्चस्व स्थापित करने का हर संभव प्रयास किया। भारत के लोगों पर भी उन्होंने अनेक दमनकारी नीतियाँ बनाकर अधिकार जमा लिया था। एक बार वे कौंसिल में अपनी मनपसंद का अंग्रेज फ़ौजी अफसर रखवाना चाहते थे परंतु अंग्रेजी साम्राज्य ने मना कर दिया। उन्होंने दबाव बनाने के लिए इस्तीफा देने की बात कही। उन्होंने सोचा कि उनके रुतबे को देखते हुए अंग्रेजी सरकार उनकी बात मान लेगी लेकिन ऐसा नहीं हुआ। इस बात से क्षुब्ध होकर उन्होंने इस्तीफा दे दिया और वापस इंग्लैंड चले गए।
प्रश्न 4. बिचारिए तो, क्या शान आपकी इस देश में थी और अब क्या हो गई ? कितने ऊँचे होकर आप कितने नीचे गिरे ? आशय स्पष्ट कीजिए।
उत्तर- लेखक यहाँ लॉर्ड कर्जन को संबोधित करते हुए कहता है कि कुछ समय पहले तक भारत और ब्रिटिश साम्राज्य में आपकी बड़ी धाक थी लेकिन अब आपने अपना मान-सम्मान खो दिया है। आपका भारत में बड़ा रुतबा था। आपकी और आपकी पत्नी की कुर्सी भी सोने की थी। यहाँ के सभी रईस आपको सलाम पहले करते थे बादशाह को बाद में। जब भी जुलूस चलता था तो आपका हाथी सबसे ऊँचा था और हौदा, चँवर तथा छत्र आदि सबसे बढ़-चढ़कर थे। ईश्वर और महाराज एडवर्ड के बाद अगला स्थान आपको ही दिया जाता था। परंतु बाद में यह स्थिति थी कि एक फ़ौजो अफ़सर को भी आपके कहने के अनुसार ब्रिटिश सरकार नहीं रखा। इससे भारत और ब्रिटिश साम्राज्य दोनों जगहों पर आपका अपमान हुआ है। आप तो बहुत ऊँचे उठकर भी अब बहुत नीचे गिर गए हो।
प्रश्न 5. आपके और यहाँ के निवासियों के बीच कोई तीसरी शक्ति भी 'तीसरी शक्ति' किसे कहा गया है ?
उत्तर- लेखक ने यहाँ तीसरी शक्ति ब्रिटिश साम्राज्य को कहा है। ब्रिटिश साम्राज्य की रानी विक्टोरिया इंग्लैंड में बैठे-बैठे ही भारत पर शासन चला रही थी। उसी के आदेशों की पालना भारत में होती थी। लॉर्ड कर्जन को भारत वायसराय के पद से हटाया जाना भी उसी के संकेतों के आधार पर ही हुआ था। उस समय लॉर्ड कर्जन को भी आशा नहीं थी कि उसे भारत देश को छोड़ जाना पड़ेगा और न ही भारतवासियों को उम्मीद थी कि ऐसा हो जाएगा फिर ऐसा हुआ। इसके पीछे सूत्रधार के समान कार्य ब्रिटिश साम्राज्य को चलाने वाली सर्वोच्च शक्ति इंग्लैंड से कर रही थी। इसी कारण लेखक ने उसे 'तीसरी शक्ति' कहा है।
प्रश्न 6. पाठ का यह अंश 'शिवशंभु के चिट्ठे' से लिया गया है। शिवशंभु नाम की चर्चा पाठ में भी हुई है। बालमुकुंद गुप्त ने इस नाम का उपयोग क्यों किया होगा ?
उत्तर - बालमुकुंद गुप्त ने शिवशंभु के चिट्ठे उस समय लिखे जब लॉर्ड कर्ज़न भारत का वायसराय था। लॉर्ड कर्जन का उद्देश्य भारत में अंग्रेजी साम्राज्य का वर्चस्व स्थापित करना था। वह कांग्रेस और शिक्षित वर्गों को घृणा की दृष्टि से देखता था। वह सरकारी निरंकुशता का पक्षधर था। इसी कारण उसने प्रेस की स्वतंत्रता पर भी प्रतिबंध लगा रखा था। कोई भी व्यक्ति अपनी इच्छा के अनुसार नहीं लिख सकता था। ऐसी स्थिति में बालमुकुंद गुप्त जी ने अंग्रेज़ी साम्राज्य और तत्कालीन वायसराय लॉर्ड कर्जन की नीतियों पर व्यंग्य करने के लिए एक काल्पनिक नाम की आवश्यकता थी। उन्होंने 'शिवशंभु' नाम चुना और इसी नाम को आधार बनाकर शिवशंभु के चिट्ठे लिखे जिसमें तत्कालीन भारतीय समाज की दुर्दशा और दुःख का वर्णन होने के साथ-साथ व्यंग्यात्मक शैली में लॉर्ड कर्जन की नीतियों पर भी कटाक्ष है।
प्रश्न 7. नादिर से भी बढ़कर आपकी जिद्द है- लॉर्ड कर्जन के संदर्भ में क्या आपको यह बात सही लगती है ? पक्ष या विपक्ष में तर्क दीजिए।
उत्तर - नादिरशाह एक क्रूर राजा था। वह सन् 1736 से 1747 तक ईरान का बादशाह रहा। अपने तानाशाही स्वरूप के कारण ही उसे 'नेपोलियन ऑफ परशिया' के नाम से भी जाना जाता था। उसने एक दिल्ली में कत्लेआम किया। इसमें उसने निर्दयतापूर्वक स्त्री, पुरुष, बच्चे और बूढ़ों को मौत के घाट उतार दिया। इतना निर्दयी होने पर भी उसमें कुछ संवेदनाएं बाकी थीं। जब आसिफ़जाह ने तलवार गले में डालकर उसके आगे समर्पण किया और कत्लेआम को रोकने की प्रार्थना की तो उसने उसी समय कत्लेआम रोक दिया। लॉर्ड कर्ज़न इस संदर्भ में खरे नहीं उतरते हैं। उन्होंने भी बंगाल का विभाजन करने की ज़िद्द पकड़ी थी। आठ करोड़ भारतवासियों के बार-बार विनती करने पर भी उसने अपनी जिद्द नहीं छोड़ी और बंगाल का विभाजन करके ही दम लिया। इस संदर्भ hat 7 लॉर्ड कर्जन की ज़िद्द नादिरशाह से बड़ी लगती है। लॉर्ड कर्जन को इस दृष्टि में नादिरशाह से भी अधिक क्रूर कहा जा सकता है। उसने यहाँ के लोगों की इच्छा का बिल्कुल भी ध्यान न रखते हुए केवल मनमानी की और अपनी ज़िद्द को पूरा किया। अतः कहा जा सकता है कि लॉर्ड कर्जन की ज़िद्द नादिरशाह से बढ़कर थी।
अन्य महत्त्वपूर्ण प्रश्नोत्तर।
1 - पाठ के अंतर्गत भारत की जनता के स्वभाव पर क्या टिप्पणी की गई है?
उत्तर :- लेखक के अनुसार, भारत की जनता उदार, सहनशील, कृतज्ञ, करुणाशील, क्षमाशील एवं श्रद्धालु है। भारत की जनता अत्याचारियों द्वारा किए जाने वाले अत्याचारों की अधिक परवाह नहीं करती, बल्कि वे ईश्वर पर विश्वास करते हैं तथा सब अत्याचारों को सहते रहते हैं। उनका विश्वास है कि ईश्वर ही उनका एकमात्र रक्षक अर्थात् रखवाला है। अतः समय आने पर वही सारी विपदाओं को दूर करेगा।
वास्तव में, लेखक भारतीय जनता के स्वभाव की इन विशेषताओं की चर्चा व्यंग्य के रूप में ही करता है। वह जनसामान्य पर व्यंग्य करके उनकी आंतरिक क्षमता एवं शक्ति को प्रेरित करना चाहता है, ताकि वे जीवन की विपरीत परिस्थितियों को अपने अनुकूल करने के लिए प्रयास करें। साथ-ही-साथ, उसने भारतीयों के सरल स्वभाव की चर्चा करते हुए कहा कि यदि कोई शासक उनके साथ सद्व्यवहार करता है तो वे उसे युगों-युगों तक याद रखते हैं तथा अपने गीतों में उसकी महिमा गाते हैं।
2 - लॉर्ड कर्जन द्वारा किए गए भारत-विरोधी कार्यों को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर - लॉर्ड कर्ज़न ने भारतीय जनता के हितों के विरुद्ध निम्नलिखित कार्य किए
(i) लॉर्ड कर्जन ने लोक-इच्छा के विरुद्ध बंगाल-विभाजन किया।(ii) उसने भारतीय शिक्षा प्रणाली को तहस-नहस कर दिया। (iii) भारतीयों की अभिव्यक्ति संबंधी स्वाधीनता को कम किया। (iv) भारतीयों की इच्छा अनिच्छा के विरुद्ध मनमाने ढंग से शासन किया। (v) प्रेस पर प्रतिबंध लगाया।(vi) अंग्रेज़ों का वर्चस्व स्थापित करना।(vii) देश के संसाधनों का अंग्रेज़ी हित में प्रयोग किया।
3- लॉर्ड कर्जन मूलत: जन विरोधी थे- सिद्ध कीजिए।
उत्तर- लॉर्ड कर्जन मूल रूप से जन विरोधी शासक थे। वे अपनी मनमानी करते थे। ब्रिटिश शासन की नज़रों में वे श्रेष्ठ शासक सिद्ध होना चाहते थे, इसलिए उन्होंने भारत की जनसामान्य की शक्ति को कम करने तथा भारतीय संसाधनों से ब्रिटिश हितों की पूर्ति करने के विभिन्न उपाय किए। भारतीयों की भावनाओं को जानबूझकर अनसुना किया तथा अनेक ऐसी योजनाएँ क्रियान्वित कीं, जिससे भारतीयों की उन्नति होने की अपेक्षा उनकी शक्ति कम हो।
4- लॉर्ड कर्ज़न की इच्छा क्या थी? उसका क्या परिणाम हुआ?
उत्तर - लॉर्ड कर्ज़न की इच्छा थी कि वह भारतवर्ष में पनपने वाले सारे विरोधों एवं संघर्षों को कमज़ोर कर दे। ब्रिटिश साम्राज्य की जड़ें गहरी बनाने के लिए उसने बंग-भंग की योजना बनाई ताकि बंगाल में उत्पन्न होने वाला राजनीतिक विरोध फिर से सिर न उठा पाए, लेकिन वास्तव में, इसका परिणाम लॉर्ड कर्ज़न की इच्छा के बिलकुल विपरीत हुआ।
बंगाल के लोग बंग-भंग की योजना से शांत होने की अपेक्षा और अधिक क्षुब्ध एवं उग्र हो गए। चारों ओर अशांति फैल गई और स्वतंत्रता की आग पहले की अपेक्षा और अधिक भड़क उठी। अब यह बंगाल तक ही सीमित न रहकर पूरे देश में फैल गई।
5 'बिछड़ने का समय बड़ा ही करुणोत्पादक होता है'-पंक्ति का भाव स्पष्ट कीजिए।
उत्तर - जीवन कभी भी एक जैसा नहीं होता रहता है। इसमें आशा-निराशा, प्रेम-विरह, मिलना-बिछुड़ना, सुख-दुःख आदि लगा ही रहता है। इसके बावजूद मनुष्य जहाँ प्रेम, मिलन, आशा, सुख आदि सकारात्मक स्थितियों में प्रसन्न होता है, वहीं विरह, निराशा आदि की स्थितियों में दुःखी हो जाता है। करुणा से भर जाता है। यह स्वाभाविक मानवीय प्रवृत्ति है।
इसी कारण कहा जा सकता है कि बिछड़ने का समय बड़ा ही करुणोत्पादक होता है। लेखक अपने कथन के प्रमाण में दो गायों की चर्चा करते हुए कहता है कि जब कमज़ोर गाय को हमेशा सताने वाली शक्तिशाली गाय से उसे अलग किया गया, तो कमज़ोर गाय ने खाना तक नहीं खाया। बिछड़ने का दुःख तो पशु-पक्षियों में भी होता है, फिर मनुष्य इससे अलग कैसे रह सकता है।
6 नर सुल्तान का गुणगान क्यों किया जाता है?
उत्तर- नर सुल्तान एक राजकुमार था। उसने अपनी विपदा के कुछ वर्ष नरवरगढ़ नामक राज्य में गुज़ारे थे। उसने वहाँ चौकीदार से लेकर ऊँचे पदों पर कार्य किया। जब वह नरवरगढ़ छोड़कर जाने लगा, तो उसने नरवरगढ़ की भूमि तथा उसके निवासियों के प्रति असीम स्नेह प्रकट किया। उस स्नेह को देखकर नरवरगढ़वासी मुग्ध हो गए। तब से वे अपने गीतों में नर सुल्तान की महिमा का गुणगान करते हैं।
1 बोधात्मक प्रश्न
निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दीजिए।
1 विदाई-संभाषण पाठ के आधार पर बताइए कि शांत रस का आविर्भाव कब होता है?
2 'परदे के पीछे एक और ही लीलामय की लीला हो रही है, यह उसे ख़बर नहीं' पंक्ति का भावार्थ स्पष्ट कीजिए।
3 बिस्तरा गरम राख पर रखने का अर्थ स्पष्ट करते हुए बताइए लेखक ने ऐसा क्यों कहा?
4 लार्ड कर्जन की तुलना क्लर्क से क्यों की गई? 5 राजकुमार सुल्तान की शासन पद्धति के माध्यम से लेखक ने लॉर्ड कर्ज़न के शासन पर व्यंग्य किया है। स्पष्ट कीजिए।
6 विदाई-संभाषण के माध्यम से लेखक क्या कहना चाहता है?
7 पाठ में भारतीयों की किन-किन विशेषताओं का उल्लेख किया गया है?
8 लॉर्ड कर्जन का प्रत्येक कार्य ब्रिटिश सरकार के हित में था। स्पष्ट कीजिए
9 लेखक की भाषा-शैली पर विचार व्यक्त कीजिए।
10 पाठ का प्रतिपाद्य अपने शब्दों में लिखिए।
बहु-विकल्पी प्रश्न
1. 'विदाई संभाषण' पाठ के लेखक कौन हैं
उत्तर - बाल मुकुंद गुप्त ।
2. बाल मुकुंद गुप्त का जन्म कब हुआ ?
उत्तर - 1865.
3. बाल मुकुंद गुप्त का जन्म कहाँ हुआ ?
उत्तर – गुड़ियानी । -
4. बाल मुकुंद गुप्त राष्ट्रीय नवजागरण के सक्रिय क्या था?
5. बाल मुकुंद गुप्त का निधन कब हुआ था?
उत्तर - 1907.
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