अतीत में दबे पांव ( वितान)12th CBSE/HBSE

 अभ्यास के प्रश्नोत्तर | अतीत में दबे पांव।

प्रश्न 1. सिंधु सभ्यता साधन संपन्न थी, पर उसमें भव्यता का आडंबर नहीं था। कैसे? 

                          अथवा

 साधन-संपन्न होते हुए भी सिंधु में भव्यता का आडंबर नहीं था। कैसे?


उत्तर: मुअनजोदड़ो सिंधु सभ्यता का सबसे बड़ा नगर था। यहाँ की खुदाई करने पर पुरातत्व के वैज्ञानिकों को सोने के आभूषण, सुइयाँ, ताँबे के बर्तन आदि मिले हैं। इसके अतिरिक्त यहाँ बड़े-बड़े भवनों, इमारतों के खंडहर भी मिले हैं। यहाँ तरह-तरह की मुहरें भी मिली हैं। यहाँ की वास्तुकला या नगर-नियोजन अद्भुत है जिसमें चौड़ी सड़कें, नालियाँ, कुएँ आदि की व्यवस्था थी। यहाँ बैलगाड़ियों के प्रयोग के साक्ष्य मिले हैं। इन सभी के आधार पर यह कहा जा सकता है कि सिंधु सभ्यता साधनों से संपन्न थी। परंतु इस सभ्यता में भव्यता का आडंबर नहीं था। किसी भी देश में चाहे राजतंत्र हो या धर्मतंत्र की शासन व्यवस्था हो, वहाँ बड़े-बड़े महल, राजाओं या महंतों की समाधियाँ, विशाल मंदिर बनाए जाते थे। परंतु सिंधु सभ्यता में इन सभी का अभाव है। इसलिए यह कहा जा सकता है कि सिंधु सभ्यता साधन-संपन्न थी, पर उसमें भव्यता का आडंबर नहीं था।


प्रश्न 2. “सिंधु सभ्यता की खूबी उसका सौंदर्य बोध है जो राज-पोषित या धर्म-पोषित न होकर समाज-पोषित था।" ऐसा क्यों कहा गया है?

उत्तर - सिंधु सभ्यता के लोगों में कला या सुरुचि का विशेष महत्त्व था। चूँकि यहाँ पर न तो राजाओं के महल, समाधि मिले हैं और न ही मंदिर, अतः यह भी स्पष्ट होता है कि यहाँ न तो राजतंत्र था और न ही धर्मतंत्र। यहाँ pi जितनी भी वस्तुएँ मिली हैं, वे सभी सुंदर और कलात्मक प्रतीत होती हैं। यहाँ सभी मकान लगभग एक शैली में बने हुए हैं। यहाँ मिली धातु और पत्थर की मूर्तियों, मिट्टी के बर्तनों व उन पर बने चित्रों, अच्छे ढंग से बनाई गई मुहरों और उन पर उत्कीर्ण सुंदर आकृतियों, खिलौनों, आभूषणों, सुघड़ लिपि रूप आदि को देखकर यह कहा जा सकता है कि सिंधु सभ्यता के लोगों में सौंदर्य बोध था। ये सभी चीजें समाज के विभिन्न वर्गों के लोगों के घरों से मिली हैं। इसीलिए लेखक ने कहा है कि सिंधु सभ्यता की खूबी उसका सौंदर्य बोध है जो राज-पोषित या धर्म-पोषित न होकर समाज-पोषित था।


प्रश्न 3. पुरातत्व के किन चिह्नों के आधार पर आप यह कह सकते हैं कि "सिंधु सभ्यता ताकत से शासित होने की अपेक्षा समझ से अनुशासित सभ्यता थी।" 

उत्तर : पुरातत्व के निम्नलिखित चिह्नों के आधार पर यह कहा जा सकता है कि सिंधु सभ्यता ताकत से शासित होने की अपेक्षा समझ से अनुशासित सभ्यता थी

(i) हड़प्पा से लेकर हरियाणा तक के सिंधु सभ्यताकालीन नगरों में औजार तो मिले हैं, परंतु कहीं भी हथियार नहीं मिले हैं जैसे कि राजतंत्र में होते हैं। इसका अर्थ है कि सिंधु सभ्यता में ताकत के बल पर अनुशासन नहीं था।

(ii) मुअनजो-दड़ो सिंधु सभ्यता का सबसे बड़ा और समृद्ध नगर था। यहाँ उच्च व निम्न वर्ग के लोग रहते थे। परंतु उन सभी के घर एक जैसी शैली में बने हैं। मुख्य सड़क पर बने मकानों की पीठ ही सड़क पर दिखाई देती है। इससे भी पता चलता है कि इस सभ्यता के लोग आपसी समझ से अनुशासित थे।


प्रश्न 4. “यह सच है कि यहाँ किसी आँगन की टूटी-फूटी सीढ़ियाँ अब आपको कहीं नहीं ले जाती; वे आकाश की तरफ अधूरी रह जाती हैं। लेकिन उन अधूरे पायदानों पर खड़े होकर अनुभव किया जा सकता है कि आप दुनिया की छत पर हैं, वहाँ से आप इतिहास को नहीं, उसके पार झाँक रहे हैं।" इस कथन के पीछे लेखक का क्या आशय है? 

उत्तर : इस कथन के माध्यम से लेखक यह कहना चाहता है कि मुअनजो-दड़ो विश्व के प्राचीनतम नगरों में से और सिंधु घाटी की सभ्यता विश्व की प्राचीनतम सभ्यताओं में से एक है। यद्यपि आज इस नगर के केवल खंडहर ही शेष हैं, फिर भी इन खंडहरों की सहायता से ही हम अपनी प्राचीन गौरवशाली तथा समृद्ध संस्कृति व सभ्यता को देख सकते हैं। यहाँ के मकानों की सीढ़ियाँ भले ही टूट चुकी हैं और वे खुले आकाश की तरफ अधूरी हैं, फिर भी वे हमें भारत के गौरवशाली इतिहास के दर्शन कराती हैं। ये खंडहर मकान, टूटी-फूटी व अधूरी सीढ़ियाँ इस बात के प्रमाण 3/3 कि भारतीय सभ्यता-संस्कृति दुनिया की प्राचीनतम सभ्यता-संस्कृतियों में से एक है। यहाँ खड़े होकर अपने इतिहास के बारे में जान सकते हैं और उसे अनुभव कर सकते हैं।


प्रश्न 5. “टूटे-फूटे खंडहर, सभ्यता और संस्कृति के इतिहास के साथ-साथ धड़कती जिंदगियों के अनछुए समयों का भी दस्तावेज होते हैं। इस कथन का भाव स्पष्ट कीजिए।


उत्तर : मुअनजो-दड़ो, हड़प्पा जैसे प्राचीन नगरों के भवन, इमारतें आदि अब खंडहर के रूप में ही उपलब्ध हैं। परंतु ये खंडहर कभी लोगों के निवास-स्थान, कार्य-स्थल हुआ करते थे। ये खंडहर और यहाँ से मिलने वाली वस्तुएँ हमें तत्कालीन प्राचीन सभ्यता व संस्कृति के बारे में नई-नई जानकारियों प्रदान करती हैं। इन खंडहर शहरों में भले ही आज वीरानी छाई हुई हो, परंतु इनके टूटे-फूटे मकान, सड़कें आदि यह स्पष्ट करती है कि यहाँ पहले कभी लोग रहा करते थे, वे यहाँ अपने परिवार के साथ सुखमय जीवन व्यतीत करते थे। भले ही तत्कालीन समाज के लोग अपने जीवन के बारे में आज कुछ न बता पाएँ, परंतु ये खंडहर उनके जीवन, व्यवहार, व्यवस्था आदि के पुख्ता प्रमाण बने हुए हैं। यही इस कथन का मूलभाव है।

प्रश्न 6. इस पाठ में एक ऐसे स्थान का वर्णन है जिसे बहुत कम लोगों ने देखा होगा, परंतु इससे आपके मन में उस नगर की एक तस्वीर बनती है। किसी ऐसे ऐतिहासिक स्थल, जिसको आपने नजदीक से देखा हो. का वर्णन अपने शब्दों में कीजिए।

उत्तर:- दिल्ली एक ऐतिहासिक स्थल है। पिछले महीने मुझे वहाँ जाने का अवसर मिला। नई दिल्ली की सड़कें, भवन, वास्तु-कला आदि पुरानी दिल्ली की सड़कों, भवनों आदि से भिन्न हैं। पुरानी दिल्ली में लाल किला, शीशगंज गुरुद्वारा, चाँदनी चौक, जामा मस्जिद, लाहौरी गेट, अजमेरी गेट आदि प्रसिद्ध ऐतिहासिक स्थल हैं। पुरानी दिल्ली की सड़कें अपेक्षाकृत कम चौड़ी हैं। चाँदनी चौक जैसे स्थानों पर सड़क के दोनों ओर दुकानें बनी हुई हैं। इन सड़कों से तंग गलियाँ मुहल्लों के अंदर ले जाती हैं। यहाँ अनेक भवनों में छोटी व पक्की ईंटे लगी हैं, तो भव्य इमारतों जैसे लालकिला में ईंटों का कम और पत्थरों का अधिक प्रयोग हुआ है। शीशगंज गुरुद्वारा उस स्थान पर स्थित है जहाँ औरंगजेब ने सिख गुरू का सिर कलम कर दिया था। यहाँ अनेक जगहों पर छोटे छोटे मंदिर बने हुए हैं जो यहाँ के लोगों की आस्था के प्रतीक हैं। यहाँ अनेक प्रसिद्ध शासकों, जैसे हुमायूँ, शेरशाह सूरी, हजरत निजामुद्दीन, अमीर खुसरो आदि के मकबरे हैं। इस शहर के बारे में प्रसिद्ध है कि यह कई बार उजड़ा और बसा।


प्रश्न 7. नदी, कुएँ, स्नानागार और बेजोड़ निकासी व्यवस्था को देखकर लेखक पाठकों से प्रश्न पूछता है कि क्या हम सिंधु घाटी सभ्यता को जल संस्कृति कह सकते हैं? आपका जवाब लेखक के पक्ष में है या विपक्ष में? तर्क दें।


उत्तर :- मेरा जवाब लेखक के पक्ष में है। इस संबंध में निम्नलिखित तर्क दिए जा सकते हैं :

(i) सिंधु घाटी सभ्यता मैदानी क्षेत्र में फैली हुई थी और इस सभ्यता के अधिकतर नगर नदियों के पास स्थित थे।

 (ii) सिंधु घाटी सभ्यता में मुअनजोदड़ो एक प्रमुख नगर था। इस नगर के साथ-साथ हड़प्पा भी एक प्रमुख नगर था। इन दोनों नगरों के अवशेषों या खंडहरों में कुएं मिले हैं। इससे पता चलता है कि इस सभ्यता के लोग भू-जल का प्रयोग करना जानते थे। यह ऐसी पहली ज्ञात प्राचीन सभ्यता है जहाँ कुएं मिले हैं। मुअनजो-दड़ो में लगभग सात सौ कुएँ मिले हैं।

(iii) सिंधु घाटी सभ्यता के लोग पानी की निकासी के प्रति सजग थे। उनके नगरों, बस्तियों में गंदे पानी की निकासी के लिए नालियों के प्रमाण मिले हैं। ये नालियाँ ईटों से ढकी होती थी। घर का गंदा पानी एक छोटी हौदी में गिरता था और वहाँ से वह नालियों के जाल से बहता हुआ बस्ती, नगर से बाहर जाता था।

(iv) सिंधु घाटी सभ्यता में, विशेषकर मुअनजोदड़ो में बड़े कुंड और स्नानागर मिले हैं। इन कुंडों में पानी भरने व वि पानी की निकासी की उत्तम व्यवस्था थी।

अतः संक्षेप में, हम सिंधु घाटी सभ्यता की नदियों, कुंड, कुएँ, पानी की बेजोड़ निकासी के आधार पर इसे 'जल संस्कृति' कह सकते हैं।


प्रश्न 8. सिंधु घाटी सभ्यता का कोई लिखित साक्ष्य नहीं मिला है। सिर्फ अवशेषों के आधार पर ही धारणा बनाई है। इस लेख में मुअनजोदड़ो के बारे में जो धारणा व्यक्त की गई है क्या आपके मन में इससे कोई भिन्न धारणा या भाव भी पैदा होता है? इन संभावनाओं पर कक्षा में समूह चर्चा करें।

उत्तर:- सिंधु घाटी सभ्यता का कोई लिखित साक्ष्य नहीं मिला है, परंतु इस पाठ में लेखक ने बताया है कि प्रसंगवश मेसोपोटामिया के शिलालेखों में मुअनजो-दड़ों के लिए 'मेलुहा' शब्द का संभावित प्रयोग मिलता है। चूँकि इस सभ्यता के नगरों के अवशेष मिले हैं, लगभग पचास हजार वस्तुएँ मिली हैं, अतः इनसे यह तो स्पष्ट है कि सिंधु घाटी में एक सभ्य समाज रहता था। परंतु क्या यह समाज हजारों वर्षों से यहीं रहता चला आ रहा था या घुमंतू जातियाँ भोजन, पानी व अनुकूल वातावरण की खोज करती हुई सिंधु नदी व उसके मैदानों में पहुँच कर वहीं बस गई। जिस प्रकार मुअनजोदड़ो के मकानों, इमारतों को कच्ची-पक्की ईंटों से बने टीलों पर बनाया गया है, उससे तो यही स्पष्ट होता है कि इस नगर को तत्कालीन समाज ने नियोजित ढंग से बनाया होगा। ये लोग मेहनती, कला-प्रेमी रहे होंगे। वे परस्पर सद्भाव रखते होंगे। वे एक ही धर्म या समुदाय से संबंधित रहे होंगे। इसीलिए वहाँ पर मंदिर या अन्य धार्मिक स्थलों का अभाव है। इसके अतिरिक्त उनकी मुहरों को देखकर यह भी कहा जा सकता है कि उस समाज के कुछ लोग शिक्षित भी रहे होंगे।



' परीक्षोपयोगी अन्य प्रश्नोत्तर -


प्रश्न 1. मुअनजोदड़ो का क्या अर्थ है? वर्तमान में इसे किस नाम से पुकारते हैं?


उत्तर : मुअनजो-दड़ो का शाब्दिक अर्थ है-मुर्दों का टीला। वर्तमान में इसे मोहनजोदड़ो के नाम से पुकारा जाता है। मोहनजोदड़ों पाकिस्तान के सिंघ प्रांत में स्थित पुरातात्विक स्थान पर बसा हुआ है। इसी स्थान पर सिंधु घाटी सभ्यता थी। 

प्रश्न 2. मोहनजोदड़ो के अजायबघर में खुदाई के समय मिली कौन-कौन सी चीजें रखी है?

अथवा

मुअनजोदड़ो के अजायबघर का संक्षिप्त वर्णन कीजिए। 

उत्तर : यद्यपि मुअनजोदड़ो की खुदाई करने पर लगभग पचास हजार चीजें मिली है, परंतु उनमें से अधिकतर चीजें  करांची, लाहौर, दिल्ली और लंदन के अजायबघरों में रखी हैं। मुअनजो-दड़ो में बनाए गए अजायबघर में मुट्ठी भर चीजें रखी हुई हैं, जैसे काला पड़ चुका गेहूँ, ताँबे व काँसे के बर्तन, मुहरें, वाद्य यंत्र, चाक पर बने बड़े मृद्-भांड (मिट्टी के बर्तन), चौपड़ की गोटियाँ, दीये, माप-तौल के पत्थर, मिट्टी की बैलगाड़ी व अन्य खिलौने, दो पाटन वाली चक्की, कधी, मिट्टी के कंगन, रंग-बिरंगे पत्थरों के हार, पत्थर के औजार आदि। यहाँ पर रखे हुए सोने के गहने अब चोरी हो चुके हैं।


प्रश्न 3. 'अतीत में दबे पाँव' पाठ के आधार पर बौद्ध स्तूप का वर्णन कीजिए।

उत्तर : मुअनजो-दड़ो में बना बौद्ध स्तूप एक जीर्ण-शीर्ण टीले पर बना है। यह स्तूप इस सभ्यता के नष्ट होने के बाद बनाया गया था। यह स्तूप पच्चीस फुट ऊँचे चबूतरे पर छब्बीस सदी पहले बनी ईंटों से बनाया गया है। इस चबूतरे पर भिक्षुओं के लिए कमरे बने हुए हैं। यह स्तूप मुअनजोदड़ो के 'गढ़' वाले हिस्से के पास स्थित है जो कि नगर का सबसे ऊँचा हिस्सा है। इस स्तूप के ठीक पीछे 'गढ़' और सामने 'उच्च' वर्ग की बस्ती है। इसके पीछे पाँच किलोमीटर दूर सिंधु नदी बहती है।

 प्रश्न 4. मोहनजोदड़ो कहाँ बसा हुआ था? इसे विशेष प्रकार से क्यों बसाया गया था?

 उत्तर:- मुअनजोदड़ो या मोहनजोदड़ो सिंधु नदी से लगभग पाँच किलोमीटर दूर बसा हुआ था। इस नगर को मनुष्यों द्वारा बनाए गए टीलों पर बसाया गया था। इसे इसलिए विशेष प्रकार से बसाया गया था ताकि सिंधु नदी में आने वाली बाढ़ के प्रभाव से नगर को बचाया जा सके। इस नगर में कुओं को छोड़कर लगभग सभी चीजें (मकान, कुंड, मुहरें आदि) चौकोर या आयताकार थीं। चूँकि यह नगर अपने समय में प्रमुख केन्द्र था, अतः यह लगभग दो सौ हेक्टर क्षेत्र में फैला हुआ था। इसमें अनुष्ठान के लिए महाकुंड, कोठार, प्रशासनिक भवन आदि की व्यवस्था थी।


प्रश्न 5. वर्तमान में सिंधु घाटी सभ्यता को किस रूप में देखा और महसूस किया जा सकता है?

उत्तर : वर्तमान में सिंधु घाटी सभ्यता को विश्व की प्राचीनतम सभ्यताओं में से एक प्रमुख सभ्यता के रूप में देखा जाता है। यद्यपि इस सभ्यता के प्रमाण के रूप में भवनों, मकानों, सड़कों आदि के केवल खंडहर या अवशेष ही बचे हुए हैं, फिर भी ये खंडहर हमारे गौरवशाली, समृद्ध, संपन्न व विकसित इतिहास का अनुभव कराते हैं। इस सभ्यता की टूटी-फूटी सड़कों व मार्गों पर कान देकर यहाँ आने-जाने वाली बैलगाड़ियों की रूनझुन सुनी जा सकती है। टूटे-फूटे मकानों की रसोई की खिड़की पर खड़े होकर उसकी गंध महसूस की जा सकती है।

प्रश्न 6. मोहनजोदड़ो के अवशेष कितने पुराने हैं? इन्होंने भारत को प्राचीन सभ्यताओं की किस श्रेणी में ला खड़ा किया है?


उत्तर : मोहनजोदड़ो या मुअनजो-दड़ी के अवशेष लगभग पाँच हजार वर्ष पुराने हैं। जब तक इस स्थान की खोज नहीं हुई थी (सन् 1922 तक), तब तक भारतीय संस्कृति को प्राचीन संस्कृति नहीं माना जाता था। सुमेर, मिस्र, मेसोपोटामिया (इराक) आदि देशों की संस्कृति को ही विश्व की प्राचीनतम संस्कृति एवं सभ्यता माना जाता था। मुअनजो-दड़ो या महिनजादड़ा के अवशेषों की खोज ने पुरातत्व के दृष्टिकोण से भारतीय संस्कृति व सभ्यता को भी प्राचीनतम संस्कृति सिद्ध कर दिया। इस खोज ने भारत को मिस्र, मेसोपोटामिया की प्राचीन सभ्यताओं के समकक्ष ला खड़ा किया।


प्रश्न 7. 'कॉलेज ऑफ प्रीस्ट्स' किसे कहा गया है? इसका निर्माण क्यों किया गया होगा?


उत्तर : मुअनजो-दड़ो के 'गढ़' में एक महाकुंड स्थित है। इसी महाकुंड के समीप एक बहुत लंबी-सी इमारत के अवशेष है। इस इमारत के बीचों-बीच खुला, बड़ा दालान है तथा तीन तरफ बरामदे हैं। इन बरामदों में छोटे-छोटे कमरे रहे होंगे। इसी इमारत को 'कॉलेज ऑफ प्रीस्ट्स' कहा गया है। विद्वानों का मानना है कि प्राचीन काल में यहाँ धार्मिक अनुष्ठान किए जाते थे, यहीं पर ही धर्मगुरु अपने शिष्यों को ज्ञान देते थे। इन शिष्यों के रहने तथा उन्हें ज्ञान देने के लिए बने स्थान को ज्ञानशाला कहा जाता था। इस इमारत का निर्माण इसलिए किया गया होगा, ताकि गुरु अपने शिष्यों को धर्मविज्ञान आदि की शिक्षा दे सकें। 

प्रश्न 8. मोहनजोदड़ो में जल निकासी की व्यवस्था किस प्रकार की गई थी?

 उत्तर:- मोहनजोदड़ों में जल निकासी की व्यवस्था बड़ी ही सुनियोजित थी। घरों से निकलने वाला गंदा पानी सबसे पहले एक छोटी नाली के माध्यम से छोटी हौदी में गिरता था। वहाँ से यह गंदा पानी सड़क के किनारे बनी नाली में जाकर गिरता था। ये नालियाँ प्रायः पक्की ईंटों से बनी व ढकी होती थीं। ऐसी नालियों का जाल पूरे नगर में बिछा हुआ था और इस प्रकार पूरे नगर का गंदा पानी बाहर निकाल दिया जाता था। यहाँ बने कुंड का गंदा पानी बाहर निकालने के लिए भी नाली बनी हुई है। कहीं-कहीं ये नालियों अनगढ़ पत्थरों से ढकी हुई हैं।


प्रश्न 9. मोहनजोदड़ो को जल संस्कृति का नाम क्यों दिया जाता है? अथवा | क्या हम सिंधु घाटी सभ्यता को जल संस्कृति कह सकते हैं? तर्कपूर्वक उत्तर दीजिए।

उत्तर:- मोहनजोदड़ो दुनिया की ऐसी पहली ज्ञात संस्कृति है जो खोदकर भू-जल का प्रयोग करती थी। यह लगभग सात सी कुएँ मिले हैं। इस नगर में गंदे पानी की निकासी के लिए नालियाँ बनाई गई थीं। ये नालियाँ पक्की ईंटों से बनी व ढकी हुई थीं। यहाँ एक बड़ा महाकुंड है, जिसमें लोग सामूहिक स्नान करते होंगे। इस महाकुंड के दो ओर स्नानघर बने हैं। यह नगर भी सिंधु नदी के निकट बसाया गया था। अतः यहाँ की नदी, कुंड, स्नानागार, कुएँ, पानी की बेजोड़ निकासी के आधार पर इसे 'जल संस्कृति' का नाम दिया जाता है। जल की ऐसी सुव्यवस्था किसी अन्य प्राचीन सभ्यता में नहीं मिलती। 

प्रश्न 10. सिंधु सभ्यता के भग्नावशेषों में किसी भी हथियार का न मिलना क्या सिद्ध करता है?


उत्तर :- सिंधु सभ्यता हडप्पा से लेकर हरियाणा तक फैली हुई थी। इस सभ्यता के भग्नावशेषों से अनेक औजार, आभूषण, बर्तन आदि तो मिले हैं, परंतु कहीं से भी हथियार नहीं मिले हैं। इससे यह सिद्ध होता है कि इस सभ्यता में राजतंत्र अर्थात् राजा का शासन नहीं था क्योंकि राजतंत्र वाली सभ्यताओं में हथियार अवश्य मिलते हैं। इस तथ्य से यह भी सिद्ध होता है कि सिंधु सभ्यता मैं अनुशासन था, परंतु वह अनुशासन ताकत के बल पर नहीं था। वहाँ कोई भी सैन्य सत्ता नहीं थी।


प्रश्न 11 मोहनजोदड़ो की सड़कों की क्या विशेषताएँ है? 

उत्तर - मोहनजोदड़ो की सभी सड़कें आड़ी या सीधी हैं। इसे आजकल 'ग्रिड प्लान' कहा जाता है। यहाँ की मुख्य सड़क तैंतीस फुट चौड़ी है और इसके दोनों ओर बने मकानों की पीठ ही दिखाई देती है। यह सड़क पहले कभी पूरे नगर को नापती होगी, परंतु अब यह आया मील बची है। इस पर हो बैलगाड़ियाँ एक साथ आसानी से आ-जा सकती हैं। इसके अतिरिक्त इस नगर में कुछ छोटी सड़कें भी हैं, जो नौ से बारह फुट चौड़ी हैं। सभी सड़कों के किनारों पर पक्की ईंटों से बनी व ढकी नालियाँ हैं। इसके अतिरिक्त इस नगर में कुछ छोटी गलियाँ भी हैं।

टिप्पणियाँ

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

लता मंगेशकर 11वीं हिन्दी।

RAJASTHAN KI RAJAT BUNDE राजस्थान की रजत बूंदे Class 11

घर की याद -भवानी प्रसाद मिश्र xi class CBSE/HBSE