ऊषा 12th आरोह।
खंड 'घ' - अभ्यास के प्रश्नोत्तर।
प्रश्न 1. कविता के किन उपमानों को देखकर यह कहा जा सकता है कि 'उषा' कविता गाँव की सुबह का गतिशील शब्द-चित्र है?
उत्तर : इस कविता में कवि ने जिन उपमानों (प्रसिद्ध वस्तुओं) का प्रयोग किया है, वे सभी ग्रामीण समाज से जुड़े हैं। गाँवों होते ही चौके को राख से लीपा जाता है। खाना तैयार करते समय सिल का प्रयोग किया जाता है। लाल खड़िया (चाक) से घर में के सुबह मुख्य द्वार पर चित्र, शुभ प्रतीक आदि बनाए जाते हैं। ये सभी कार्य इसी क्रम में पूरे किए जाते हैं और कवि ने भी इसी क्रम में इन उपमानों का प्रयोग किया है। अतः इन उपमानों को देखकर यह कहा जा सकता है कि 'उषा' कविता गाँव की सुबह का गतिशील चित्र है।
प्रश्न 2. भोर का नभ
"राख से लीपा हुआ चौका (अभी गीला पड़ा है)"
नई कविता में कोष्ठक, विराम चिह्नों और पंक्तियों के बीच का स्थान भी कविता को अर्थ देता है। उपर्युक्त पंक्तियों में कोष्ठक से कविता में क्या विशेष अर्थ पैदा हुआ है? समझाइए ।
उत्तर : नई कविता के प्रयोगवादी कवियों ने अपनी कविताओं में नए-नए प्रयोग किए हैं, जैसे- कोष्ठक, विराम-चिह्न,पक्तियों के बीच पर्याप्त स्थान, एक ही वाक्य की पुनरुक्ति आदि। इन प्रयोगों के द्वारा वे अपनी कविता में मन के सूक्ष्म भावों,मन की स्थिति, यथार्थ आदि को पूर्ण स्पष्टता के साथ अभिव्यक्त करने में सफल रहे हैं। इन पंक्तियों में कवि ने कोष्ठक का प्रयोग करके राख से लीपे हुए चौके की ताजगी, नमी की ओर संकेत किया है। अतः यहाँ कवि इस तथ्य को भी स्पष्ट करना चाहता है कि भोर का नभ राख से लीपे हुए ऐसे चौके के समान दिखाई दे रहा है, जो अभी-अभी लीपा गया है और जिसमें ताजगी भी है।
अन्य महत्त्वपूर्ण प्रश्न।
1. सूर्योदय से पहले आकाश में क्या क्या परिवर्तन होते हैं ? 'उषा' कविता के आधार पर बताइए।
अथवा
'उषा' कविता के आधार पर सूर्योदय से ठीक पहले के प्राकृतिक दृश्यों का चित्रण कीजिए।
उत्तर - सूर्योदय से पहले आकाश का रंग शंख जैसा था, उसके बाद आकाश राख से लीपे चौक जैसा हो गया। सुबह की नमी के कारण वह गीला प्रतीत होता है। सूर्य की प्रारंभिक किरणों से आकाश ऐसा लगा मानो काली सिल पर थोड़ा केसर डालकर उसे धो दिया गया हो काली स्लेट पर लाल खड़िया मिट्टी मल दी गई हो। सूर्य उदय के साथ ऐसा लगा जैसे नीले स्वच्छ जल में किसी गोरी युवती का प्रतिबिंब झिलमिला रहा हो।
2. 'उषा' कविता के आधार पर उस जादू को स्पष्ट कीजिए जो सूर्योदय के साथ टूट जाता है।
उत्तर - सूर्योदय से पूर्व उषा का दृश्य अत्यंत आकर्षक होता है। भोर के समय सूर्य के किरणें जादू के समान लगती है। इस समय आकाश का सौंदर्य क्षण-क्षण में परिवर्तन होता रहता है। यह उषा का जादू है। नीले आकाश का शंख- सा पवित्र होना, काली सिल पर केसर डालकर धोना, काली स्लेट पर लाल खड़िया मल देना, नीले जल में गोरी नायिका का झिलमिलाता प्रतिबिंब आदि दृश्य उषा के जादू के समान लगते हैं। सूर्योदय होने के साथ ही ये दृश्य समाप्त हो जाते हैं।
3.'स्लेट पर या लाल खड़िया चाक मल दी हो किसी ने।'- स्पष्ट करो।
उत्तर- कवि कहता है कि सुबह के समय अँधेरा होने के कारण आकाश स्लेट के समान लगता है। उस समय सूर्य की लालिमा युक्त किरणों से ऐसा लगता है जैसे काली स्लेट पर लाल खड़िया चाक मल दिया हो। कवि आकाश में उभरे लाल-लाल धब्बों के बारे में बताना चाहता है।
4.भोर के नभ की राख से लीपा गीला चौका की संज्ञा दी गई हैं।क्यों ?
उत्तर - कवि कहता है कि भोर के समय ओस के कारण आकाश नमी युक्त व धुंधला होता है। राख से लिपा हुआ चौका भी मटमैले रंग का होता है। दोनों का रंग लगभग एक जैसा होने के कारण कवि ने भोर के नभ को राख से लीपा गीला चौका की संज्ञा दी है। दूसरे, चौका को लीपे जाने से वह स्वच्छ हो जाता है। इसी तरह भोर का नभ भी पवित्र होता है।
5. 'उषा' कविता में प्रात:कालीन आकाश की पवित्रता, निर्मलता व उज्जवलता से संबंधित पंक्तियों को बताइए।
उत्तर- पवित्रता - राख से लीपा हुआ चौका।
निर्मलता - काली सिल ज़रा से केसर से कि जैसे धुल गई हो। उज्जवलता- नीले जल में किसी की गौर,झिलमिल देह जैसे हिल रही हो।
6. सिल और स्लेट का उदाहरण देकर कवि ने आकाश के रंग के बारे में क्या कहा है ?
उत्तर- कवि ने सिल और स्लेट के रंग की समानता आकाश के रंग से की है। भोर के समय का आकाश का रंग गहरा नीला काला होता है। और उसमें थोड़ी-थोड़ी सूर्योदय की लालिमा मिली हुई है।
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