अक्क महादेवी (वचन)Akk Mhadevi e bhukh mat machal

 (i) कविता के साथ


प्रश्न 1. 'लक्ष्य प्राप्ति में इंद्रियाँ बाधक होती हैं। इसके संदर्भ में अपने तर्क दीजिए। 

उत्तर : आँख, जीभ, मन आदि वे अंग हैं जो हमें बाहरी पदार्थ के गुणों का अनुभव कराते हैं और यह अनुभव कराने की शक्ति अत्यंत प्रबल होती है। ये इंद्रियाँ हमें बाह्य जगत् से जोड़ती हैं और इस जगत् के पदार्थों का उपभोग करने के लिए प्रेरित करती हैं। दूसरी ओर लक्ष्य प्राप्त करने के लिए मन पर संयम होना आवश्यक है क्योंकि लक्ष्य पाने के लिए हमें सच्ची लगन के साथ मेहनत करनी होती है।

अतः जो व्यक्ति अपनी इन इंद्रियों के वश में रहता है, वह संयम के साथ मेहनत नहीं कर सकता। उसके मन में काम, क्रोध, मोह, अहंकार, लोभ, विषय-वासना आदि विकार जाग्रत हो जाते हैं। वह अपने लक्ष्य को भूलकर इन सांसारिक सुखों के पीछे भागने लगता है। ये इंद्रियाँ ही मनुष्य को मोह-माया में फँसाती हैं और उसे गहरे पतन की ओर धकेलती जाती हैं। उदाहरण के लिए यदि कोई विद्यार्थी अपनी इंद्रियों के वशीभूत होकर फिल्में देखता है, इधर-उधर भटकता है, तो निश्चय ही वह शिक्षा प्राप्ति के उद्देश्य से भटक जाएगा। अतः संक्षेप में कहा जा सकता है कि लक्ष्य प्राप्ति में इंद्रियाँ बाधक होती हैं।


प्रश्न 2. 'ओ चराचर! मत चूक अवसर' इस पंक्ति का आशय स्पष्ट कीजिए।

उत्तर: 'अवसर चूकना' मुहावरे का अर्थ होता है मौका निकल जाना। 'चराचर' शब्द का अर्थ चर (जड़)व अचर (चेतन) पदार्थ। इस पंक्ति में कवयित्री यह कहना चाहती हैं कि सभी जड़ व चेतन पदार्थों को ईश्वर-प्राप्ति का कोई मौका नहीं खोना चाहिए। उनका संदेश है कि यदि इंद्रियों को वश में रखा जाए तो ईश्वर को आसानी से प्राप्त किया जा सकता है। प्रत्येक मनुष्य को यह बात समझ लेनी चाहिए व ईश्वर प्राप्ति का यह मौका हाथ से नहीं निकलने देना चाहिए। 


प्रश्न 3. ईश्वर के लिए किस दृष्टांत का प्रयोग किया गया है? ईश्वर और उसके साम्य का आधार बताइए।

उत्तर : कवयित्री ने ईश्वर के लिए दृष्टांत के रूप में जूही के फूल का प्रयोग किया है। ईश्वर और जूही के फूल में अनेक समानताएँ हैं। जूही का फूल सुंदर होता है तथा ईश्वर भी सुंदर है। जूही का फूल बहुत अच्छी गंध देता है। वह गंथ चारों ओर फैली होती है परन्तु वह गंध दिखाई नहीं देती है, उसको केवल अनुभव किया जा सकता है। ठीक उसी प्रकार ईश्वर भी सर्वत्र व्याप्त है, वह प्रत्येक जीव को आनंद प्रदान करता है, परन्तु स्वयं दिखाई नहीं देता है। यही ईश्वर तथा जूही के फूल साम्य का आधार है। 

प्रश्न 4. ‘अपना घर' से क्या तात्पर्य है? इसे भूलने की बात क्यों कही गई हैं?

उत्तर : दूसरे वचन में ‘अपना घर' से कवयित्री का तात्पर्य अपने समस्त सगे-संबंधियों से युक्त परिवार से है। कवयित्री का मत है कि मनुष्य अपने रिश्तों-नातों के कारण ही मोह-माया में पड़ जाता है और वह अपने व उनके लिए भौतिक सुख जुटाने का प्रयास करता है। इस कारण वह ईश्वर से विमुख हो जाता है। जब तक मनुष्य अपने पिता, पुत्र, माता, भाई-बहिन आदि के मोह में रहेगा, तब तक वह सांसारिक माया से मुक्त नहीं हो सकेगा। ऐसी स्थिति में वह ईश्वर को प्राप्त नहीं कर सकेगा। इसीलिए कवयित्री ने अपना घर भूल जाने की बात कही है, ताकि वह ईश्वर को प्राप्त कर सके। 

प्रश्न 5. दूसरे वचन में ईश्वर से क्या कामना की गई है और क्यों?

उत्तर: दूसरे वचन में कवयित्री ने यह कामना की है कि वह अपने घर को भूल जाए और उसके पास जो कुछ भी है, वह नष्ट हो जाए। उसे माँगने पर भी भीख न मिले और यदि कोई उसे भीख देने का प्रयास भी करे तो उसे भी कुत्ता झपटकर छीन ले।

कवयित्री ने ऐसी कामना इसलिए की है क्योंकि वह जानती है कि परिवार व भौतिक सुखों के कारण उसके मन में अहंकार होगा और उसके मन में इन सांसारिक बंधनों के प्रति मोह माया होगी। जबकि कवयित्री केवल ईश्वर को प्राप्त करना चाहती है। यही कारण  कि वह इन सबके नष्ट होने व ईश्वर को प्राप्त करने की कामना करती है। (ii) 

कविता के आस-पास 

प्रश्न 1. क्या अक्क महादेवी को कन्नड़ की मीरा' कहा जा सकता है? चर्चा करें।

उत्तर : मीरा बाई श्रीकृष्ण की अनन्या भक्तिन थीं जबकि अक्क महादेवी तो चन्न मल्लिकार्जुन (शिव) की उपासिका थीं। अतः इष्टदेव के आधार पर दोनों में पर्याप्त भिन्नता है। परन्तु उन दोनों में अनेक समानताएँ भी हैं जो कि निम्नलिखित हैं।

(i) दोनों ही कवयित्रियाँ राज परिवार से जुड़ी थीं।

(ii) दोनों ही कवयित्रियों ने अपने समस्त सुखों को ठोकर मारकर अपने-अपने इष्टदेव की उपासना की थी। वे अन्य लोगों को भी सांसारिक सुखों को त्यागने का संदेश देती हैं।

(iii) दोनों ही कवयित्रियों ने अपने-अपने इष्टदेव के प्रति एकनिष्ठता का भाव दर्शाया है। (iv) दोनों ही कवयित्रियों ने अपने भावों, अनुभवों, भक्ति आदि को बड़े ही सरल, सहज एवं प्रभावशाली ढंग  प्रस्तुत किया है।

अतः उपर्युक्त तथ्यों के आधार पर यह कहा जा सकता है कि अक्क महादेवी वास्तव में 'कन्नड़ की मीरा' हैं।

प्रश्न 2. पाठ्य-पुस्तक में संकलित दोनों वचनों के आधार पर अक्क महादेवी की चारित्रिक विशेषताओ को स्पष्ट कीजिए।

उत्तर - इन वचनों के आधार पर उनकी निम्नलिखित चारित्रिक विशेषताएँ उभर कर सामने आती हैं

(1) अनन्य उपासिका : कवयित्री अक्क महादेवी अपने इष्टदेव के प्रति अपने एकनिष्ठ प्रेम व भक्ति-भाव रखती है। वह उसे प्राप्त करने के लिए अपना सर्वस्व त्यागने के लिए तत्पर है। उसके मन में अपने इष्टदेव को प्राप्त करने की प्रबल इच्छा है।

(2) स्वयं पर नियंत्रण: अक्क महादेवी ने स्वयं पर नियंत्रण कर रखा है। संसार के अन्य लोग पारिवारिक व भौतिक सुखों की कामना करते हैं जबकि कवयित्री अपने समस्त सुखों को ठोकर मार देती है। वह ईश्वर से कामना करती है कि वह उससे भीख मँगवाए।

(3) इष्टदेव की दूती :कवयित्री स्वयं को अपने इष्टदेव चन्न मल्लिकार्जुन की दूती मानती है। वह लोगों को सम्बोधित करके कहती है कि मैं तुम्हारे सामने चन्न मल्लिकार्जुन का संदेश लेकर आई हूँ कि आत्म-नियंत्रण के बल पर ईश्वर प्राप्ति का यह अवसर चूकना मत।


प्रश्न 3. कवयित्री के अनुसार भूख, प्यास, नींद, मद, मोह एवं ईर्ष्या - ये सभी ईश्वर को प्राप्त करने में कैसे बाधक बन सकते हैं?

उत्तर : कवयित्री के अनुसार भूख, प्यास, नींद, मद, मोह, ईर्ष्या आदि ये सभी मन के विकार हैं। इनके कारण मनुष्य सांसारिक बंधनों में जकड़ जाता है और वह ईश्वर से विमुख हो जाता है। वह अपने लिए सुखों की कामना करने लगता है और इन सुखों के अभाव के कारण वह क्रोध, ईर्ष्या आदि करने लग जाता है। प्रभु का स्मरण नहीं कर पाता है। इस प्रकार ये सभी विकार ईश्वर को प्राप्त करने में बाधक बन जाते हैं।

प्रश्न 4. कवयित्री अक्क महादेवी ने स्वयं को निरीह व असहाय बनाने की कामना ईश्वर से क्यों की है?

 उत्तर : वस्तुतः कवयित्री अपने जीवन में केवल अपने इष्टदेव को प्राप्त करना चाहती हैं। उसे लगता है कि जब तब मनुष्य अपने पारिवारिक बंधनों में जकड़ा रहेगा, जब तक वह भौतिक सुखों से घिरा हुआ रहेगा, तब तक वह ईश्वर को प्राप्त नहीं कर सकता है। इसीलिए कवयित्री भी अपने समस्त भौतिक सुखों के नष्ट होने व स्वयं को निरीह एवं असहाय बनाने की कामना ईश्वर से करती है।

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