Kese Banti ha kavita कैसे बनती है कविता।

 प्रश्न 1. कविता क्या है?

उत्तर : इस प्रश्न का उत्तर देने के लिए अनेक कवियों, साहित्यकारों, दार्शनिकों आदि ने अपने-अपने मत प्रकट किए हैं, परंतु इसकी समुचित परिभाषा नहीं दी जा सकी है। इसका मूल कारण यही है कि कविता का स्वरूप और प्रकृति अत्यंत व्यापक है और उसे परिभाषा की सीमाओं में बाँधना असंभव है। इन जटिलताओं के बाद भी यही कहा जा सकता है कि 'कविता शब्दों की वह लयपूर्ण रचना है, जो हमारी संवेदना के निकट है, हमारे मन को छू लेती है, जिसके मूल में संवेदना है, राग है और यह संवेदना संपूर्ण सृष्टि से जुड़ने, उसे अपना बना लेने का बोध कराती है।


प्रश्न 2. कविता के प्रमुख घटक अथवा उपकरण कौन से हैं? 

उत्तर : कविता के प्रमुख घटक निम्नलिखित हैं :

(i) भाषा : कविता किसी-न-किसी भाषा के माध्यम से ही प्रकट होती है। अतः यह कविता का प्रमुख घटक है। कविता रचने के लिए भाषा का पूरा ज्ञान होना जरूरी है।

(ii) शब्द : निस्संदेह भाषा में शब्द ही प्रयुक्त होते हैं, परंतु प्रत्येक शब्द का एक निश्चित अर्थ होता है। सभी भाषाओं

में समानार्थक शब्द होते हैं। अतः कविता लिखते समय उचित शब्द, उसके सही अर्थ आदि का ज्ञान होना आवश्यक है।

(iii) शैली कविता में वाक्य गठन की कुछ खास प्रणालियाँ होती हैं, जिन्हें शैली कहा जाता है। अतः कविता लिखते समय काव्य शैलियों का ज्ञान होना आवश्यक है। 

(iv) बिंब व छंद : कविता में लय को बनाए रखने के लिए छंदों का ज्ञान होना जरूरी है। आजकल छंदबद्ध और छंदमुक्त दोनों ही प्रकार की कविताएँ लिखी जा रही हैं। इसी प्रकार बिंब भी कविता में होने आवश्यक हैं।

 (v) समाज की प्रवृत्तियाँ कविता समय-विशेष की उपज है। उसका स्वरूप समाज की परिस्थिति के अनुरूप बदलता रहता है। अतः कविता लिखते समय समाज की प्रचलित प्रवृत्तियों का ज्ञान होना आवश्यक है।


(vi) मौलिकता : कविता में अभिव्यक्त भावों, विचारों आदि में मौलिकता व नयापन होना आवश्यक है।


(vii) कम शब्दों का प्रयोग कविता में कम-से-कम शब्दों में पूरे भाव को प्रकट करने की क्षमता होनी चाहिए। कभी-कभी तो दो शब्दों या दो वाक्यों के बीच अनकही छोड़ देना भी कवि की ताकत बन जाती है।


(viii) उचित चिह्नों का प्रयोग: कविता में अल्पविराम, योजक-चिह्न, विस्मयादि बोधक आदि चिह्नों के उचित प्रयोग से नूतनता आती है और भावों की स्पष्ट अभिव्यक्ति में सहायता मिलती है।


प्रश्न 3. कविता में बिंब और छंद के महत्त्व को स्पष्ट कीजिए।


उत्तर : (i) बिंब: बिंब का अर्थ है - छाया अथवा आकृति। हमारे पास बाह्य जगत से जुड़ने के लिए पाँच इंद्रियाँ (आँख, कान, त्वचा व जिह्वा) हैं। कविता में बिंब से तात्पर्य यह है कि करिता में ऐसे शब्दों का प्रयोग किया जाना चाहिए जिन्हें सुनकर अपने आप ही मन के भीतर उसका चित्र उत्पन्न हो जाए या फिर वह शब्द भाव को सुनाता-सा प्रतीत हो। कवि सुमित्रानंदन ने भी कविता के लिए चित्र भाषा की आवश्यकता पर बल दिया है। किसी विचारक ने कहा है कि कविता ऐसी चीज है जिसे पाँच ज्ञानेद्रियों रूपी उँगलियों से पकड़ा जा सकता है। अतः संक्षेप में कहा जा सकता है कि बिंबों के प्रयोग से कविता प्रभावी बन जाती है और उसमें निहित भावों को बड़ी सहजता के साथ ग्रहण किया जा सकता है।

(ii) छंद : कविता में छंद अर्थात् आंतरिक लय का भी विशेष महत्त्व है। इसीलिए कवि को भाषा के संगीत की भी पहचान होनी चाहिए। मुक्त छंद की कविता में भी अर्थ की लय का होना जरूरी है। छंद अथवा भाषा के संगीत व लब के कारण ही कविता शेष साहित्यिक विधाओं से भिन्न व उच्च कोटि की विधा मानी जाती है।


प्रश्न 4. कविता लेखन में शब्दों का क्या महत्त्व है? उत्तर: शब्द किसी रचना के आधार होते हैं। बिना उचित शब्दों के रचना निष्प्राण होती है। कविता के बारे में भी यही सत्य है अर्थात् उचित शब्दों से कविता महान बनती है। अंग्रेज़ी कवि डब्ल्यू.एच. आर्डेन ने उचित ही कहा है शब्दों के साथ खेलो (प्ले विद वस)। जो व्यक्ति शब्दों के साथ खेलता है, वह उनके भीतर छिपे अनेक अर्थों को खोज लेता है। सही शब्दों को जब वह कविता में प्रयुक्त करता है, तो पाठक भी उन भावों का आनंद लेता है जो कवि के मन में होते हैं। शब्दों की तुकबंदी से कविता बनती है।


प्रश्न 5. कविता लेखन से संबंधित दो मत क्या हैं?

अथवा 

कविता लेखन की प्रतिभा जन्मजात होती है या यह अभ्यासजन्य है? कविता लेखन के संबंध में अपना मत स्पष्ट कीजिए।


उत्तर : कविता-लेखन अर्थात् काव्य-प्रतिषा के संबंध में आरंभ से ही दो भिन्न-भिन्न मत प्रचलित हैं। कुछ विद्वानों का मत है कि कविता-लेखन की विधि या प्रणाली सिखाई नहीं जा सकती, यह तो जन्मजात प्रतिभा होती है। उनका मत यह भी है कि यह मानव के अन्तर्मन से स्वयं फूटती है। कवि के मन में भाव उत्पन्न होते रहते हैं और वह उन्हें कलमबद्ध करता अर्थात् लिखता रहता है।


परंतु मैं उपर्युक्त पत से सहमत नहीं हूँ। मेरे विचार के अनुसार कविता लेखन को अभ्यास द्वारा सीखा जा सकता है। इस संबंध में ऐसे अनेक उदाहरण संसार में देखे जा सकते हैं, जब साधारण व्यक्ति ने भी अभ्यास द्वारा अपने भीतर काव्य-प्रतिभा को उत्पन्न किया। अब तो कई विश्वविद्यालयों में कविता-लेखन का प्रशिक्षण विधिवत् ढंग से दिया जा रहा है। यदि व्यक्ति भाषा, शब्द, वाक्य- विन्यास, छंद, बिंब आदि का समुचित अध्ययन व अभ्यास करे, तब वह भी कविता लिख सकता है। वैसे भी प्रत्येक व्यक्ति में रचनात्मकता का गुण होता है। उसे अभ्यास द्वारा तराशने की कोशिश करनी होती है।

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