कैसे करें कहानी का नाट्य रूपांतरण। Kese kren kahani ka natya rupantaran
खड
प्रश्न 1, कहानी जीर नाटक में क्या-क्या समानताएँ होती है?
अथवा
कहानी और नाटक की किन्हीं तीन समानताओं को लिखिए।
उत्तर - कहानी और नाटक में निम्नलिखित समानताएँ हैं:
(i) कहानी और नाटक दोनों ही साहित्यिक विधा के अन्तर्गत आते हैं।
(ii) कहानी और नाटक दोनों में ही एक कथानक अवश्य होता है।दोनों में ही इस कथानक का प्रायः एक आरंभ, मध्य और अंत होता है।
(iii) कहानी और नाटक दोनों में पात्रों की योजना अवश्य होती है। पात्रों के द्वंद्व, घटनाओं, कार्यों आदि के बल पर कहानी और नाटक का कथानक आगे बढ़ता है।
(iv) कहानी और नाटक दोनों में संवादों का प्रयोग होता है। कई बार लेखक कहानी में संवादों का प्रयोग नहीं करता है, परंतु नाटक में संवादों के माध्यम से ही कथानक आगे बढ़ता है।
(v) कहानी और नाटक दोनों में ही कम-से-कम एक उद्देश्य अवश्य होता है। इस उद्देश्य की पूर्ति के लिए ही कहानीकार व नाटककार क्रमशः कहानी और नाटक की रचना करते हैं।
(vi) कहानी और नाटक दोनों में ही भाषा और शैली नामक तत्त्व होते हैं।
प्रश्न - 2 कहानी और नाटक में क्या अंतर है? कहानी और नाटक में क्या-क्या असमानताएँ हैं? उत्तर: यद्यपि कहानी और नाटक दोनों ही साहित्यिक विधा के अन्तर्गत आते हैं, परंतु दोनों में पर्याप्त अंतर हैं जो कि निम्नलिखित हैं:
अथवा
(i) कहानी का संबंध लेखक (कहानीकार) व पाठक से जुड़ता है, जबकि नाटक का संबंध नाटककार, निर्देशक, पात्र, दर्शक या पाठक आदि से जुड़ता है।
(ii) कहानी केवल पाठ्य (पढ़ी जाने वाली) साहित्यिक विधा है, जबकि नाटक पाठ्य व दृश्य साहित्यिक विधा है। इसमें अभिनेता नामक तत्व होता है जो कि कहानी में नहीं होता है।
(iii) थद्याप कहानी और नाटक दोनों में द्वंद्व का समावेश होना आवश्यक माना जाता है, परंतु नाटक में द्वंद्व की मात्रा जितनी अधिक होती है, वह उतना ही अधिक अच्छा होता है। कहानी में दुद्वंदूव नामक तत्त्व की मात्रा इतनी ज्यादा नहीं होती है।
(iv) कहानी को पढ़ते या सुनते समय हम केवल एक इंद्री (केवल आँख या कान) का प्रयोग करते हैं, जबकि नाटक देखते समय हम दो इंद्रियों (आँख व कान) का प्रयोग करते हैं। अतः नाटक के दृश्य हमें लंबे समय तक याद रहते हैं।
(v) कहानी में कहानीकार प्रायः वर्णनात्मक शैली अपनाकर अपनी प्रत्यक्ष उपस्थिति दर्शा सकता है। परंतु नाटक में नाटककार प्रत्यक्ष रूप से उपस्थित नहीं होता 5/6 नाटककार नाटक में कोष्ठकों का प्रयोग करके रंग-मंच, अभिनय आदि के बारे ) दिशा-निर्देश दे सकता है।
(vi) कहानी में कथानक भूतकाल, वर्तमान काल या भविष्यकाल की घटनाओं पर आधारित हो सकता है परंतु नाटक में कथानक को वर्तमान काल के जीवंत रूप में ही दर्शाया जाता है फिर भले ही उसका कथानक ऐतिहासिक (भूतकाल ) की घटनाओं पर आधारित क्यों न हो।
प्रश्न 3. कहानी के कथानक का नाट्य रूपांतरण करते समय किन-किन बातों का ध्यान रखना आवश्यक है?
उत्तर- कहानी के कथानक का नाट्य रूपांतरण करते समय निम्नलिखित बातों का ध्यान रखना आवश्यक है :
(i) कहानी के कथानक में जितनी भी घटनाएँ हैं, उन्हें समय व स्थान के आधार पर अलग-अलग किया जाता है। एक थान पर तथा एक ही समय पर घटने वाली एक घटना के आधार पर नाटक का एक दृश्य तैयार किया जाता है।
(ii) नाटक के प्रत्येक दृश्य का औचित्यपूर्ण होना आवश्यक है। यदि कहानी के कथानक की कोई घटना नाटक के विकास में उत्पन्न करती है या यह आवश्यक प्रतीत होती है, तब ऐसी घटना को नाटक के कथानक के रूप में सम्मिलित नहीं करना चाहिए।
(iii) कहानी के कथानक का नाट्य-रूपांतरण करते समय यह भी ध्यान रखना चाहिए कि प्रत्येक दृश्य का तार्किक विकास कथानक के अनुसार हो रहा हो। इसके लिए नाटक के प्रत्येक दृश्य के उद्देश्य व उसकी संरचना पर ध्यान देना आवश्यक है।
(iv) नाटक के लिए तैयार किए जा रहे प्रत्येक दृश्य का एक आरंभ, मध्य व अंत हो तथा वह अगले दृश्य से जुड़ा हुआ प्रतीत होता हो तथा कथानक को आगे बढ़ाता हो।
(v) यदि कहानी में किसी ऐसी घटना का वर्णन है, जिसे नाटक में अभिनय के दौरान रंगमंच पर दिखाना असंभव (जैसे घुड़दौड़ का दृश्य, हजारों सैनिकों की लड़ाई का दृश्य आदि) तथा कथानक के अनुसार उसे नाटक में दर्शाना आवश्यक भी हो, तब उस दृश्य को ध्वनि, संगीत आदि के माध्यम से प्रस्तुत करने का निर्देश दिया हो।
प्रश्न 4. कहानी के पात्र नाट्य रूपांतरण में किस प्रकार परिवर्तित किए जा सकते हैं?
अथवा
कहानी के पात्रों का नाट्य रूपांतरण करते समय कौन-कौन से कदम आवश्यक है? स्पष्ट करें। उत्तर कहानी के पात्रों का नाट्य रूपांतरण करते समय निम्नलिखित बातों का ध्यान रखना आवश्यक है।
(i) कहानी में पात्रों की वेश-भूषा, शारीरिक-मुद्रा, केश विन्यास आदि का स्पष्ट वर्णन नहीं होता है, जबकि नाटक में इस छात्रों की ओर विशेष ध्यान दिया जाता है। अतः कहानी के पात्र किस काल, संस्कृति आदि से जुड़े हैं, उन बातों को ध्यान में रखकर ही पात्रों का नाट्य रूपांतरण करना चाहिए।
(ii) कहानी में कहानीकार प्रायः वर्णनात्मक शैली अपनाकर ही पात्रों का चरित्र-चित्रण कर देता है, परंतु नाटक में संवादों के माध्यम से पात्रों का चरित्र-चित्रण अधिक होता है। अतः कहानी के पात्रों की विशेषता उभारने वाले तथ्यों को संवादों, घटनाओं के माध्यम से इस प्रकार प्रस्तुत किया जाए, ताकि पात्रों की सभी विशेषताएं उसमें प्रकट हो जाएँ।
(iii) कहानी में पात्रों के हाव-भाव, संवेदना आदि को नाटक में विशेष रूप से प्रभावी बनाने के लिए ध्वनि और प्रकाश की सहायता ली जानी चाहिए। इससे कहानी के पात्रों का नाट्य रूपांतरण अधिक प्रभावशाली बनता है।
(iv) कहानी में कई बार कहानीकार पात्रों की मनोदशा, मानसिक द्वंद्व आदि को उभार कर उसकी चारित्रिक विशेषताओं प्रस्तुत करता है। ऐसे मानसिक द्वंद्व आदि का नाट्य रूपांतरण करना कठिन होता है। ऐसी स्थिति में इन पात्रों का से नाट्य रूपांतरण करते समय पात्रों के 'स्वगत कथन' (अपने आप से ही कही गई बातें) का प्रयोग किया जाना चाहिए।
प्रश्न 5. कहानी का नाट्य रूपांतरण करते समय दृश्य विभाजन कैसे किया जाता है?
उत्तर - कहानी का नाट्य रूपांतरण करते समय दृश्य-विभाजन इस प्रकार किया जाता है :
(i) कहानी में एक समय और एक स्थान पर घटित होने वाली घटनाओं को अलग-अलग कर लिया जाता है। अब एक समय और एक स्थान पर घटित होने वाली घटना के आधार पर नाटक का एक दृश्य तैयार किया जाता है।
(ii) इन दृश्यों को इस क्रम में व्यवस्थित किया जाता है जिससे कहानी का नाट्य रूपांतरित कथानक निरंतर विकास करता प्रतीत हो अर्थात् इन दृश्यों को कथानक के बढ़ते क्रम के अनुसार व्यवस्थित किया जाता है।
(ii) कहानी के जिन दृश्यों को रंगमंच पर अभिनीत करना कठिन या असंभव हो, परंतु कथानक के हिसाब से वे दृश्य महत्वपूर्ण हो, उन्हें ध्वनि, प्रकाश, स्वगत कथन आदि के माध्यम से प्रस्तुत करने का निर्देश दिया जाना चाहिए।
(iv) कहानी के वे दृश्य, जो अनावश्यक या उबाऊ प्रतीत हों तथा जिनके न होने पर कथानक पर कोई विपरीत प्रभाव न पड़ता हो, उन दृश्यों को नाटक से हटा लेना चाहिए ताकि नाटक को लंबा व नीरस बनने से बचाया जा सके।
(v) कहानी के दृश्यों का नाट्य रूपांतरण करते तथा उन्हें व्यवस्थित क्रम में रखते समय यह ध्यान रखना चाहिए कि प्रत्येक दृश्य अपने से अलग दृश्य से जुड़ा हुआ प्रतीत हो।
प्रश्न 6. कहानी का नाट्य रूपांतरण करते समय किस मुख्य समस्या का सामना करना पड़ता है?
उत्तर: वैसे तो नाटक और कहानी अलग-अलग साहित्यिक विधाएँ हैं, परंतु इन दोनों में अनेक तत्त्व जैसे- कथानक, पात्र योजना, संवाद-योजना, भाषा-शैली, देश-काल एवं वातावरण आदि समान रूप से पाए जाते हैं। अतः कहानी का नाट्य रूपांतरण करना अपेक्षाकृत आसान है। फिर भी इसमें एक प्रमुख बाधा या समस्या का सामना करना पड़ता है। वह समस्या है - पात्र के मन के द्वंद्व का रूपांतरण करने की समस्या। कहानी में कहानीकार मनोविश्लेषणात्मक एवं वर्णनात्मक शैलियों का मिला-जुला रूप प्रयुक्त करके पात्र के द्वंद्व का चित्रण कर देता है, परन्तु नाटक में उस वेदव को भी अभिनय व संवादों के माध्यम से प्रस्तुत करना होता है। इस समस्या का समाधान करने के लिए हम या तो ध्वनि, प्रकाश आदि का विशेष प्रयोग कर सकते हैं या पात्र के स्वगत कथन द्वारा उसके मन के द्वंद्व या उसकी मनोदशा को प्रस्तुत कर सकते हैं। आजकल नाटककार, नाटक के निर्देशक वायस-ओवर, नई तकनीकों का प्रयोगकर इस समस्या को दूर कर रहे हैं।
प्रश्न 7. कहानी का नाट्य रूपांतरण करते समय संवादों के संबंध में किन-किन बातों का ध्यान रखना आवश्यक है?
उत्तर कहानी का नाट्य रूपांतरण करते समय संवादों के संबंध में निम्नलिखित बातों का ध्यान रखना आवश्यक है :
(i) चूँकि नाटक में संवाद ही सबसे महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं, अतः कहानी का नाट्य रूपांतरण करते समय संवाद बड़े ही ध्यान से लिखने चाहिएँ। नाटक के संवाद कहानी के मूल संवादों से मेल खाते हों।
(ii) कहानी में यदि संवाद लंबे हैं, तब उन्हें छोटे-छोटे संवादों में बदल देना चाहिए क्योंकि मंच पर अभिनय के दौरान लंबे संवादों में तारतम्यता बनाए रखना कठिन होता है। इन संवादों में नाटकीयता होनी चाहिए।
(iii) यदि कहानी के कुछ संवाद पर्याप्त नहीं है अथवा वे किसी घटना, तथ्य आदि का उल्लेख करने के लिए उसमें संवाद नहीं है, तब उसका नाट्य रूपांतरण करते समय नए सवाद लिखे जा सकते हैं। (iv) कहानी का नाट्य रूपांतरण करते समय जो संवाद लिखे जाएँ, वे कथानक के विकास में सहायक हो, पात्रों के अनुकूल हो तथा रोचक हों तथा कथानक से संबंधित हो ।
(v) संवाद के नाटक इतने बोधगम्य हो कि वे दर्शकों को समझ में आ सकें।
प्रश्न 8. कहानी / हिंदी कहानी को नाटक में किस प्रकार रूपांतरित किया जा सकता है?
उत्तर : कहानी और नाटक में पर्याप्त समान तत्त्व होते हुए भी दोनों में अनेक असमानताएँ हैं। इसीलिए कहानी का नाट्य रूपांतरण करते समय विशेष सावधानी बरतनी चाहिए। कहानी का नाट्य-रूपांतरण इस प्रकार किया जाता है :
(1) घटनाओं का वर्गीकरण : सबसे पहले कहानी में वर्णित घटनाओं को काल व स्थान के आधार पर अलग-अलग कर लिया जाता है। एक ही समय और स्थान पर घटित होने वाली घटना को नाटक के एक दृश्य के रूप में लिख लिया जाता है। यहाँ यह ध्यान रखना जरूरी है कि नाटक के लिए लिखे गए प्रत्येक दृश्य औचित्यपूर्ण हो और कहानी की उन घटनाओं को न लिया गया हो, जो नाटक के कथानक के अनुसार अनावश्यक हैं।
(2) विवरणात्मक दृश्यों का रूपांतरण : कहानी में जिन दृश्यों का विवरण तो दिया गया है, परंतु उनमें कोई संवाद नहीं है (जैसे घर के किसी कमरे में रखी वस्तुओं का विवरण), उन दृश्यों के आधार पर नाटक में रंग-मंच की सज्जा के लिए आवश्यक दिशा-निर्देश लिखे जाते हैं।
(3) संवादों का रूपांतरण : नाटक के लिए लिखे जा चुके दृश्यों को परस्पर जोड़ने के लिए पर्याप्त संवाद होने चाहिएँ । यदि कहानी में इस प्रकार के संवाद नहीं हैं, तब कथानक के अनुसार नाटक के लिए ये संवाद लिखे जाने चाहिए। कहानी में दी गई घटनाओं,पात्रों के द्वंद्व आदि को अब संवाद के रूप में ही प्रस्तुत किया जाना चाहिए। यदि कहानी में संवाद लंबे हैं, तब उन्हें छोटे व रोचक रूप में लिखना चाहिए। रंगमंच पर अभिनय के दौरान लंबे संवाद भाषण की तरह नीरस लगते हैं व उनमें तारतम्यता नहीं रहती है।
(4) पात्रों के चरित्र-चित्रण का रूपांतरण : कहानी में कथाकार ने जहाँ-जहाँ पात्रों की चारित्रिक विशेषताओं को विवरणात्मक रूप में दिया है, उनका नाट्य रूपांतरण करते समय संवादों व घटनाओं का उपयोग करना चाहिए।
(5) मन के द्वंद्व का रूपांतरण : कहानी में जहाँ-जहाँ कहानीकार ने पात्र के मन के द्वंद्व, उसकी मनोदशा आदि का मनोविश्लेषणात्मक शैली में वर्णन किया है, वहाँ-वहाँ उनका नाट्य रूपांतरण करते समय ध्वनि, प्रकाश, संगीत, वायस-ओवर, स्वगत कथन आदि तकनीकों का प्रयोग करने का निर्देश दिया जाना चाहिए।
(6) अच्छे नाटकों को देखना : कहानी को नाटक में रूपांतरित करने के लिए यह आवश्यक है कि अच्छे नाटक देखे जाएँ क्योंकि नाटक में नई तकनीकों, रचनात्मक दृष्टिकोण आदि का प्रयोग करने की अपार संभावनाएँ हमेशा बनी रहती हैं।
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