पत्रकारिता के विविध आयाम।Patrakarita k vivdh aayam 11 Cbse

 प्रश्न 1. समाचार क्या है ? इसकी विभिन्न परिभाषाओं पर भी प्रकाश डालिए।

उत्तर - सामान्य रूप में कोई भी घटना या सूचना समाचार नहीं होती है। समाचार के रूप में उन्ही घटनाओं, मुद्दों और समस्याओं को चुना जाता है, जिन्हें जानने में अधिक-से-अधिक लोगों की रुचि होती है। इसके साथ-साथ पत्रकार और समाचार संगठन की किसी भी समाचार के चयन, आकार और उसकी प्रस्तुति का निर्धारण करते हैं। यही कारण है कि भिन्न-भिन्न समाचार-पत्रों और समाचार चैनलों में समाचार की कोई परिभाषा ही नहीं होती। किसी घटना, समस्या और विचार में कुछ ऐसी विशेषता होती है जिसके कारण उसके समाचार बनने की संभावना बढ़ जाती है। समाचार की निम्नलिखित परिभाषाएँ दी गई हैं-

(i) " प्रेरक और उत्तेजित कर देने वाली हर सूचना समाचार है।"

(ii) "समय पर दी जाने वाली हर सूचना समाचार का रूप ले लेती है।" 

(iii) "किसी घटना की रिपोर्ट ही समाचार है।"

(iv) "समाचार जल्दी में लिखा गया इतिहास है।"

(v) "समाचार वह है जिसे कहीं, कोई दबाने या छुपाने की कोशिश कर रहा है,बाकी सब विज्ञापन हैं।"

इस प्रकार समाचार को समय-समय अनेक ढंग से परिभाषित किया गया है। वास्तव में समाचार के लिए दी गई

यह परिभाषा कि "समाचार किसी भी ऐसी ताजा घटना, विचार या समस्या की रिपोर्ट है जिसमें अधिक से अधिक लोगों की रुचि हो और जिसका अधिक से अधिक लोगों पर प्रभाव पड़ रहा हो" अधिक उचित प्रतीत होती है। 

प्रश्न 2. समाचार के विभिन्न तत्वों का संक्षेप में वर्णन कीजिए।

उत्तर- किसी घटना, विचार और समस्या को समाचार बनाने में निम्नलिखित तत्वों का योगदान होता है-

(i) नवीनता- समाचार का अर्थ हो ताजा घटना की जानकारी देना है। अतः नवीनता समाचार का आवश्यक तत्व है। किसी घटना को एक समाचार के रूप में किसी समाचार संगठन में स्थान पाने के लिए सही समय पर उसके समाचार-कक्ष में पहुँचना आवश्यक है। समाचार बनने के लिए घटना, विचार अथवा समस्या में ताज़गी या नवीनता का होना बहुत जरूरी है।

(ii) निकटता - सामान्य तौर पर लोग उन घटनाओं के बारे में अधिक जानना चाहते हैं जो उनके आस-पास घटती हैं। यह निकटता भौगोलिक, सामाजिक और सांस्कृतिक होती है। प्रत्येक व्यक्ति अपने आस-पास घटित होने वाली घटनाओं को जानना अधिक पसंद करता है। इस प्रकार निकटता समाचार का अन्य महत्त्वपूर्ण तत्व है।

(iii) प्रभाव - जिन घटनाओं का पाठकों के जीवन पर सीधा प्रभाव पड़ता है।उनकी समाचार बनने की संभावना अधिक होती है। इस प्रकार किसी घटना या सरकारी फैसले का लोगों पर पड़ने वाला प्रभाव भी समाचार का आवश्यक तत्व है।

(iv) जनरुचि - किसी भी घटना अथवा विचार को समाचार बनाने में लोगों की रुचि का भी विशेष महत्त्व होता है। प्रत्येक समाचार संगठन अपने पाठकों की रुचियों को ध्यान में रखकर ही समाचारों का चयन करता है। लोगों की रुचियों में परिवर्तन आने से समाचार लेखन भी परिवर्तित होता है। 

(v) टकराव या संघर्ष – किसी भी समाचार में टकराव या संघर्ष का पहलू होने से वह अधिक लोकप्रिय हो जाता है। युद्ध क्षेत्र के साथ-साथ खेल और राजनीति के क्षेत्र का भी टकराव और संघर्ष लोगों की रुचि का केंद्र होता है।

 (vi) महत्त्वपूर्ण लोग — कई बार किसी घटना से जुड़े लोगों के महत्त्वपूर्ण होने के कारण भी उसका महत्त्व बढ़ - जाता है। किसी क्रिकेट खिलाड़ी, फ़िल्मों सितारे अथवा राजनैतिक व्यक्ति से जुड़ी छोटी-सी बात भी समाचार बन जाती है और लोगों के आकर्षण का केंद्र बन जाया करती है।

(vii) उपयोगी जानकारियां हमारे दैनिक जीवन में उपयोग होने वाली रूप ले लिया करती हैं। प्रायः ये जानकारियाँ अथवा सूचनाएँ समाज के एक बहुत बड़े वर्ग vec H जुड़ी होती हैं। (viii) अनोखापन – किसी भी घटना में अनोखापन होना उसे आसानी से समाचार बना सकता है। सामान्य रूप में | असाधारण घटनाएँ समाचारों का रूप ले ही लेती हैं। उदाहरणस्वरूप किसी विचित्र बच्चे का पैदा होना अथवा किसी अजीबोगरीब घटना किसी भी समाचार-पत्र का समाचार बन जाया करती है।


(ix) पाठक वर्ग—किसी भी समाचार के लिए पाठक वर्ग की विशेष भूमिका रहती है। यदि पाठक वर्ग ही नहीं होगा तो समाचार और समाचार-पत्रों का कोई महत्व नहीं है। इसके साथ-साथ किसी भी समाचार-पत्र की आय का स्रोत भी पाठक वर्ग ही होता है। पाठक वर्ग के द्वारा दिए गए विज्ञापनों से समाचार-पत्रों को अच्छी आमदनी होती है।


(.x) नीतिगत ढाँचा – प्रायः सभी समाचार संगठन समाचारों के चयन और प्रस्तुति के एक नीति का पालन करते हैं। इसे 'संपादकीय नीति' भी कहा जाता है। इस संपादकीय नीति का निर्धारण संपादक या समाचार संगठन के मालिक करते हैं।


प्रत्येक समाचार संगठन अपनी संपादकीय नीति के अनुकूल ही समाचारों का चयन करते हैं।


प्रश्न 3. संपादन का अर्थ स्पष्ट करते हुए संपादन के सिद्धांतों पर प्रकाश डालिए।


उत्तर—संपादन का सामान्य अर्थ-किसी सामग्री से उसकी अशुद्धियों को दूर करके उसे पढ़ने योग्य बनाना है। एक उपसंपादक अपने रिपोर्टर की ख़बर को ध्यान से पढ़कर उसकी भाषा-शैली, व्याकरण, वर्तनी तथा तथ्य से संबंधित अशुद्धियों को दूर करके उसे समाचार-पत्रों में प्रकाशित करने योग्य बनाता है। इस पूरी प्रक्रिया को संपादन कहा जाता है। संपादन के कुछ सिद्धांत होते हैं जिनका पालन करना आवश्यक होता है। ये सिद्धांत निम्नलिखित है-

(i) तथ्यों की शुद्धता - संपादन में तथ्यों की शुद्धता का विशेष महत्त्व है। एक पत्रकार समाचार के रूप में यथार्थ को पेश करने की कोशिश करता है। अतः उसके लिए यह महत्त्वपूर्ण हो जाता है कि किसी भी विषय के बारे में समाचार लिखते समय वह जिन सूचनाओं और तथ्यों का चयन करे, वे संपूर्ण घटना का प्रतिनिधित्व करते हों । तथ्य बिल्कुल सटीक और सही होने चाहिए। तथ्यों को तोड़-मरोड़कर प्रस्तुत नहीं किया जाना चाहिए।

(ii) वस्तुपरकता – समाचार संपादन में वस्तुपरकता का भी विशेष योगदान होता है। वस्तुपरकता से तात्पर्य यह है कि पत्रकार समाचार के लिए तथ्यों को इकट्ठा और प्रस्तुत करते हुए अपने आँकलन को निजी धारणाओं या विचारों से प्रभावित न होने दे। एक ही समाचार किसी के लिए वस्तुपरक हो सकता है और किसी के लिए पूर्वाग्रह से प्रभावित हो सकता है। अतः समाचार संपादन में वस्तुपरकता बहुत ज़रूरी है।

(iii) निष्पक्षता- किसी भी समाचार संगठन को निष्पक्षता से उसकी साख बनती है। पत्रकारिता को लोकतंत्र का चौथा स्तंभ माना जाता है। इसकी राष्ट्रीय और सामाजिक जीवन में महत्त्वपूर्ण भूमिका है। अतः किसी भी समाचार संगठन को बिना किसी का पक्ष लिए सच्चाई सामने लाने का प्रयास करना चाहिए।

(iv) संतुलन — संतुलन निष्पक्षता से ही जुड़ा हुआ तत्व है। प्राय: मीडिया पर यह आरोप लगाया जाता है कि उसका झुकाव किसी एक पक्ष की ओर है जिससे समाचार में संतुलन नहीं है। समाचार में संतुलन की जरूरत नहीं पड़ती है, जहां किसी घटना में अनेक पक्ष शामिल हों और उनका आपस में टकराव हो। ऐसी स्थिति में प्रत्येक पक्ष की बात को समाचार में लाकर एक संतुलन बनाना आवश्यक हो जाता है।

(v) स्त्रोत —किसी भी समाचार में शामिल की गई प्रत्येक सूचना का कोई न कोई स्रोत होना आवश्यक है। किसी भी दैनिक समाचार-पत्र के लिए पी० टी० आई० (भाषा), यू० एन० आई (यूनीवार्त्ता) जैसी समाचार एजेंसियों के साथ-साथ अपने ही संवाददाता और रिपोर्टर स्रोत का कार्य करते हैं। कुछ जानकारियां तो सामान्य होती हैं जिनके स्रोतों का उल्लेख करना ज़रूरी होता है। इससे समाचार की साख बनी रहती है और उसके सही होने की पुष्टि भी होती है।

 प्रश्न 4 पत्रकारिता के कुछ प्रमुख प्रकारों के नाम बताए।

उत्तर- पत्रकारिता के कई प्रकार हैं। इनमें से कुछ प्रमुख प्रकार निम्नलिखित है—

(i) खोजपरक पत्रकारिता - खोजपरक पत्रकारिता से तात्पर्य ऐसी पत्रकारिता से है जिसमें गहराई से खोजबीन करके उन तथ्यों और सूचनाओं को सामने लाने की कोशिश की जाती है जिन्हें दबाने या छिपाने की कोशिश की जा रही है। इस प्रकार की पत्रकारिता में भ्रष्टाचार, अनियमितताओं और गड़बड़ियों को सामने लाने का प्रयास किया जाता है।

(ii) विशेषीकृत पत्रकारिता- पत्रकारिता में विषय के अनुसार विशेषता के सात क्षेत्र माने जाते हैं। इनमें संसदीय, न्यायालय, आर्थिक, खेल, विज्ञान और विकास, अपराध तथा फ़ैशन और फ़िल्म पत्रकारिता आदि आते हैं। इन क्षेत्रों के समाचार इन विषयों में विशेषता प्रकट किए बिना देना कठिन होता है। इसे ही विशेषीकृत पत्रकारिता कहा जाता है। 

(iii) वॉचडॉग पत्रकारिता- लोकतंत्र में पत्रकारिता और समाचार मीडिया का मुख्य दायित्व सरकार के काम-काज़ पर नज़र रखना और किसी भी गड़बड़ी को जनता के सामने लाना है। इसे ही परंपरागत रूप से वाचडॉग पत्रकारिता कहा गया है।

(iv) एडवोकेसी पत्रकारिता – कई बार समाचार संगठन किसी विचारधारा या किसी खास मुद्दे को उठाकर आगे बढ़ते हैं और उस विचारधारा या मुद्दे के पक्ष में जनमत हासिल करने के लिए बड़े जोरदार अभियान चलाते हैं। इस प्रकार की पत्रकारिता को एडवोकेसी पत्रकारिता कहते हैं। इस प्रकार की पत्रकारिता का प्रयोग किसी ख़ास मुद्दे या विचारधारा पर सरकार को उसके अनुकूल प्रतिक्रिया करने के लिए बाध्य करने के लिए किया जाता है। 

प्रश्न 5. पत्रकारिता के महत्त्व पर प्रकाश डालिए।

उत्तर - महत्त्व - पत्रकारिता वर्तमान युग की महत्त्वपूर्ण संस्था है जो हमें देश-विदेश की घटनाओं से रूबरू कराती है। वर्तमान युग में इसका बहुत महत्त्व है जो निम्नांकित है-

(i) पत्रकारिता देश-विदेश की गतिविधियों की जानकारी देती है। (ii) इसके द्वारा विश्व के कोने-कोने की जानकारी पलभर में उपलब्ध हो जाती है। (iii) पत्रकारिता जनसामान्य को उनके कर्त्तव्य, कर्मनिष्ठा एवं अधिकारों का बोध कराती है। (iv) वर्तमान युग में पत्रकारिता जनता की आँखों की रोशनी तथा कानों की श्रवण शक्ति बन गई है। (v) यह एक ओर ज्ञान-विज्ञान की विभिन्न जानकारियों का आधार बनती है तो दूसरी ओर रोज़गार के अवसर उपलब्ध कराती है।

(vi) पत्रकारिता समाज-सुधार, राष्ट्रीय-चेतना और मानव-कल्याण की प्रेरणा प्रदान करती है। (vii) यह युगीन समस्याओं से जनसामान्य को जोड़ती है।

प्रश्न 6. पत्रकार की बैसाखियों का वर्णन कीजिए।


उत्तर- पत्रकार का विशेष गुण है-संदेह करना। वास्तव में संदेह और सवाल किसी भी स्थिति में परिवर्तन के पहले कदम हैं। अगर संदेह न हो और सवाल न किए जाएँ तो परिवर्तन कठिन हो जाएगा। लेकिन संदेह और सवाल के रास्ते में पत्रकार के पत्रकारिता के मूल्यों को भी अनदेखा नहीं करना चाहिए। इसके लिए पत्रकार को निम्नलिखित चार बैसाखियों का सहारा लेना चाहिए-

(i) सच्चाई - पत्रकारिता की विश्वसनीयता इसी तत्व पर आधारित है। अतः पत्रकार के लिखने से पहले तथ्यों की जाँच-परख और पुष्टि करना अनिवार्य है। उसे बयानों को तोड़ना-मरोड़ना नहीं चाहिए यह सुनिश्चित करना चाहिए कि अफवाहों को कोई जगह न मिले। अतः पत्रकार के सत्य का पूर्ण ध्यान रखना चाहिए।

(ii) संतुलन - संतुलन का तात्पर्य है कि सच्चाई की कसौटी पर कसे जाने के बाद तथ्यों, बयानों और आँकड़ों के प्रयोग में संतुलन रखा जाए। विवादास्पद मुद्दों में दोनों पक्षों की बात रखना अति आवश्यक है अथवा एकपक्षीय समाचार असंतुलित होगा।

(iii) निष्पक्षता - यह पत्रकार का महत्त्वपूर्ण गुण है क्योंकि निष्पक्षता के आधार पर ही सच्चाई और संतुलन कायम रह सकते हैं। अतः पत्रकार के निष्पक्ष होकर समाचार लिखना चाहिए। किसी भी पत्रकार के लिए पक्षपात अपशब्द के समान है। जो पत्रकार अपने समाचारों में निष्पक्ष नहीं होता, वह पत्रकार नहीं हो सकता। पक्षपाती पत्रकार को पाठक अनदेखा कर देते हैं। इसलिए जरूरी है कि पत्रकार समाज में निजी राय न व्यक्त करें।

(iv) स्पष्टता - इसका तात्पर्य है कि पत्रकारिता में स्पष्टता का पूर्ण निर्वाह होना चाहिए। पत्रकारिता साहित्य से भिन्न है। हो सकता है कि कोई समाचार लालित्यपूर्ण ढंग से लिखा गया है। उसमें शब्दों को जादुई रूप से पिरोया गया हो लेकिन इसके कारण समाचार में अस्पष्टता का दोष नहीं आना चाहिए। समाचार से कोई भ्रम नहीं पैदा होना चाहिए। उसे शीशे की तरह साफ़ होना चाहिए। इसके लिए अनिवार्य है कि समाचार में वाक्य स्पष्ट, सीधे और छोटे रहें। उनमें किसी प्रकार की कोई उलझन न रहे।

प्रश्न 7. पत्रकारिता के मूल्य क्या हैं ? स्पष्ट कीजिए।

उत्तर - पत्रकारिता एक तरह से 'दैनिक इतिहास' लेखन है। पत्रकार प्रतिदिन का इतिहास अखबार के पृष्ठों पर अंकित करता है। संभवतः उसका कार्य बाह्य रूप से तो बहुत आसान और सहज लगता है लेकिन वह इतना आसान और सहज नहीं होता। एक पत्रकार पर अनेक प्रकार के दबाव हो सकते हैं। अपनी पूरी स्वतंत्रता के बावजूद पत्रकारिता सामाजिक और नैतिक मूल्यों से जुड़ी रहती है। उदाहरण के लिए सांप्रदायिक ढंगों का समाचार लिखते समय पत्रकार पूर्ण प्रयास करता है कि उसके समाचार से सांप्रदायिक आग न भड़के। वह जानते हुए भी ढंगों में मारे गए तथा घायल हुए लोगों के समुदाय की पहचान स्पष्ट नहीं करता।बलात्कार के मामलों में वह संबंधित महिला का नाम या चित्र प्रकाशित नहीं करता ताकि उसकी सामाजिक प्रतिष्ठा को कोई धक्का न लगे। पत्रकारों से अपेक्षा की जाती है कि वे पत्रकारिता की आचार संहिता का पालन करें ताकि उनके समाचारों से अकारण और बिना ठोस सबूतों के किसी की व्यक्तिगत प्रतिष्ठा को नुकसान न हो और न ही समाज में अराजकता और अशांति फैले।


प्रश्न 8. पत्रकारिता क्या है ? इसकी परिभाषा दीजिए।

उत्तर - पत्रकारिता के लिए अंग्रेजी में जर्नलिज़म (Journalism) शब्द का प्रयोग किया जाता है। जर्नलिज़म शब्द 'जर्नल' से बना है। जर्नल शब्द का प्रयोग प्रायः पत्रिका हेतु किया जाता है। वर्तमान युग में पत्रकारिता का क्षेत्र अत्यंत विस्तृत और बहुआयामी हो गया है। अब इसके अंतर्गत दैनिक समाचार पत्र से लेकर साप्ताहिक, पाक्षिक, मासिक, वार्षिक आदि पत्रिकाएं, आकाशवाणी दूरदर्शन सभी आते हैं।

पत्रकारिता समाज का दैनिक इतिहास है। यह एक ऐसा साधन है जो हमें समाज में घटित दिन-प्रतिदिन की घटनाओं का ज्ञान करता है। सामान्य रूप में पत्रकारिता शिक्षा, मनोरंजन और सूचना का मेल है। यह शिक्षा, मनोरंजन और सूचना संबंधित बातों को संकलित और संपादित करके जनसामान्य तक प्रेषित करता है। पत्रकारिता का सीधा संबंध समाचार- पत्र से है। समाचार-पत्र में देश-विदेश के समाचार प्रकाशित होते हैं।

परिभाषा – पत्रकारिता को समाज का सेवक और लोकतंत्र की आधारभूमि माना जा सकता है। यह समाज के लिए शिक्षा, मनोरंजन और उद्बोधन का साधन है। पत्रकारिता को अनेक विद्वानों ने अपने-अपने मतानुसार परिभाषित किया है, जैसे 

डॉ० रामचंद्र वर्मा के अनुसार, "वह विद्या जिसमें पत्रकारों के कार्यों, कर्त्तव्यों, उद्देश्यों आदि का विवेचन होता है।

प्रश्न 9. समाचार-पत्र के प्रकाशन के लिए किन-किन लोगों का महत्त्वपूर्ण योगदान होता है। स्पष्ट कीजिए। उत्तर- समाचार-पत्र को प्रकाशित करने के लिए अनेक प्रकार की मानवीय शक्ति की आवश्यकता पड़ती है। इसमें नियमित और अनियमित रूप से निम्न लोगों का महत्त्वपूर्ण योगदान होता है। 

1. संपादक (Editor)—संपादक किसी पत्र के लिए सबसे महत्त्वपूर्ण होता है। जो संपादकीय कार्य का निरीक्षण और निर्देशन करता है उसे संपादक कहते हैं। पत्र में प्रकाशित होने वाली संपूर्ण सामग्री के लिए वही जिम्मेदार होता है। पत्र की नीतियों का निर्धारण संपादक द्वारा ही किया जाता है।

2. संयुक्त संपादक (Joint Editor)—यह संपादक के दैनिक कार्यों में सामान्य रूप से सहयोग देता है। संपादक की अनुपस्थिति में वह उन कार्यों को संपन्न करता है जो संपादक के लिए अनिवार्य होते हैं। इसे सहयोगी संपादक (Deputy Editor) भी कहा जाता है।

3. सहायक संपादक (Assistant Editor)—इसका कार्य समाचार के साथ न होकर विचार के साथ होता है। अग्रलेख, संपादकीय टिप्पणियाँ, फ़ीचर, राजनैतिक घटनाओं की समीक्षा करना जनता का पथ प्रदर्शन करना, सामाजिक, सांस्कृतिक आदि गतिविधियों का लेखा-जोखा प्रस्तुत करना सहायक संपादक का कार्य होता है।

4. समाचार संपादक (News Editor )—समाचार-पत्र के संपादकीय विभाग में सबसे अधिक उत्तरदायित्व समाचार संपादक का होता है। वह समाचार विभाग के प्रत्येक कार्य का निरीक्षण करता है। वह संपादकीय विभाग के विभिन्न सहभागियों की अलग-अलग समय में ड्यूटियों लगाता है तथा देश-विदेश में फैले संवाददताओं से अपना संपर्क बनाए रखता है।

5. विशेष संपादक (Special Editor)—इस संपादक का कार्य पत्रकारिता में सर्वोत्तम और सबसे अधिक रुचिकर है। वह दूसरों के पैसों पर वह दूसरों के जीवन को अलग-अलग कोनों से देखता है। यद्यपि इसकी स्थिति एक संवाददाता जैसी है लेकिन वह अपने दैनिक कार्यों में स्वतंत्र होता है।

6. मुख्य उप संपादक (Chief Sub Editor ) - समाचार पत्र की प्रत्येक शिफ्ट में मुख्य उप संपादक ही पत्र के नेतृत्व का कार्य करता है। समाचारों तथा विभिन्न लेखों का वितरण इनके द्वारा किया जाता है। उप संपादक की लिखी रिपोर्ट की जांच करना, शीर्षक लगाना स्थान निर्धारण करना आदि कार्य मुख्य उप संपादक के होते हैं।

7. उप संपादक (Sub Editor ) - समाचार पत्र के पृष्ठों को भरने का अधिकतम कार्य उप संपादक का होता है। विभिन्न क्षेत्रों से आने वाले समाचारों को काट-छांटकर छोटा करते हैं उनकी भाषा संबंधी त्रुटियों को सुधारते हैं। सामग्री को छपने योग्य बनाकर प्रकाशन के लिए प्रेस में भेजते हैं अनुवाद कार्य भी उप संपादक ही करते हैं।

8. संवाददाता (Correspondance ) — संवाद देने वाले व्यक्ति को संवाददाता कहते हैं अर्थात् जो व्यक्ति किसी भी क्षेत्र में रहकर समाचार-पत्र के लिए खबरें भेजता है उसे संवाददाता कहते हैं। ये प्रायः स्थानीय और बाह्य दो प्रकार के होते हैं, ये किसी भी स्थान पर रहकर तरह-तरह की गतिविधियों की अपने ज्ञान के आधार पर रिपोटिंग करते हैं।

9. प्रूफ रीडर (Proof Reader ) - समाचार पत्र में प्रकाशितों होने वाली सामग्री को छपने के बाद प्रूफ की गलतियों सुधारने अथवा पढ़ने वाले को प्रूफ रीडर कहते हैं। इनकी प्रायः दो श्रेणियां होती हैं- (1) कॉपी होल्डर (2) प्रूफ रीडर ।


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